SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य वात्सल्य रत्नाकर, श्रमरणरत्न, स्याद्वाद केशरी, वादिभ सूरी, जिनागम सिद्धान्त महोदधि कुन्थु सागरजी महाराज का ॐ संक्षिप्त जीवन परिचय ॥ ससार मे प्रत्येक प्राणी जन्म लेकर ससार रूपी सागर की यात्रा पूर्ण करता है, किन्तु ऐसे भी कुछ प्राणी होते है जो स्व-पर हित करके ही अपना जीवन सफल बना लेते है। जीवन उन्ही का सफल है, जिन्होने अपने इस जीवन को प्राप्तकर आध्यात्मिक खोज मे बिताया है। कहा भी स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम् । परिवर्तिन संसार, मृतः को वा न जायते । जैसे-चक्र की तरह घूमते हुये ससार मे मरकर कौन जन्म नही लेता परन्तु जन्म उसी का सार्थक है, जिसके जन्म से वश, देश तथा धर्म की उन्नति हो । पद्माकर दिनकरो बिकची करोति, चन्द्रो विकाशयप्ति कैखचक बालम् । नाभ्यथितो जलधरोअपि जलंददाति, संत स्वय पर हितेषु कृताभियोग । जैसे -सूर्य विना कहे आप ही कमलो को खिलाता है, चन्द्रमा बिना कहे कुमुदो को प्रफुल्लित करता है, बादल बिना मागे मेह बरसाते है, वैसे ही सन्त जन भी बिना कहे परोपकार करते है। ऐसे स्व-पर कल्याण का भाव वाला सत्पुरुष ससारी जोवो को दुर्लभ है । परन्तु आज भी इस भारत वसुन्धरा पर अनेक ज्ञानी ध्यानी तपस्वी सयम मे ख्याति प्राप्त धर्म प्रभावना मे अग्रण्य सत जन विद्यमान है उन्ही मे से हमारे मध्य परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज विराजमान है।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy