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________________ लघुविद्यानुवाद २३५ ६. शुक्र महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽहतो भगवते श्रीमते पुष्पदंत तीर्थकराय अजितयक्ष महाकालीयक्षी सहिताय ॐ प्रां कों ह्रीं ह्रः शुक्रमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ।। इस मन्त्र का जप १६००० हजार करे । ७. शनि महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते मुनिसुव्रततीर्थ कराय वरुणयक्ष बहुरुपिरणीयक्षी सहिताय ॐ प्रां कों ह्रीं ह्रः शनिमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ॥ इस मन्त्र का जप २३०० हजार करे । ८. राहु महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते नेमितीर्थ कराय सर्वाण्हयक्ष कुष्मांडीयक्षी सहिताय ॐ श्रां कों ह्री ह्रः राहुमहाग्रह मम दुष्टग्रह रागकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् । इस मन्त्र का १८००० जप करे । ६. केत महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पार्श्वतीर्थ कराय धरणेद्रयक्ष पद्मावतीयक्षी सहिताय ॐ श्रां कों ह्रीं ह्रः केतुमहाग्रह मम दुष्ट ग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु २ हूं फट् ॥ इस मन्त्र का ७००० जप करे । नोट :-प्रत्येक ग्रह के जितने जप लिखे हो उतना जप करके नवग्रह विधान करे । दशमास होम करे तो ग्रह की शान्ति होती है। ___ शान्ति मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते प्रक्षीरगाशेषदोष कल्मषाय दिव्य तेजोमूर्तये नमः श्री
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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