SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लघुविद्यानुवाद २२६ प्लु ह्रा ह्री श्र ह भ्र स्र स्क्र ह. ग्री प्री श्रा श्री वात्री ह्रा ह्री प्रा प्री पू प्र. पद्मावती धरेन्द्र माज्ञापयति स्वाहा । यह पद्मावती माला मन्त्र पढने मात्र से सिद्ध होता है नित्य हो दिनमेत्रिकाल पढे । सर्व कार्य की सिद्धि होती है, भूत प्रेतादि व्याधिया नष्ट होती है। ___श्री ज्वालामालिनी देवी माला मन्त्रः' ॐ नमो भगवते चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय शशाक शख गोक्षीर हार नीहार विमल धवल गात्राय घाति कर्म निर्म लोच्छेदन करायजाति जरा मरण शोक विनाशन कराय ससार कान्तारोन्मूलन कराय अचिन्त्य बल पराक्रमाय अप्रतिहत शासनाय अप्रतिहत चक्राय त्रैलोक्य वशकराय सर्व सत्व हितकराय भव्यलोक वशकराय सुरा सुरोरगेन्द्र मणिगण खचित मुकुट कोटि तट घटित पादपीठाय त्रैलोक्यमहिताय अष्टादश दोष रहिताय धर्म चक्राधीश्वराय सर्व विद्या परमेश्वराय कुविद्या अध्नाय चतुस्त्रिशदतिशय सहिताय द्वादशगण परिवेष्टिताय शुक्लध्यान पवित्राय अनन्त ज्ञानाय अनन्त दर्शनाय अनन्तवीर्याय अनन्त सुखाय सर्वज्ञाय सिद्धाय वुद्धाय शिवाय सत्यज्ञानाय सत्यब्रह्मणे स्वयभुवे परमात्मने अच्युताय दिव्यमूर्ति प्रभामण्डलमडिताय कण्ठताल्वोष्ठ पुटव्यापार रहित तत्तदभोष्ट वस्तु कथक निशेषभाषा प्रतिपालकाय देवेन्द्र धरणेन्द्र चक्रवर्त्यादि शतेन्द्र वदित पादार विदाय पच कल्याणाष्ट महा प्रातिहार्यादि विभवालकृताय वज्रवृषभनाराच सहनन चरम दिव्य देहाय देवाधिदेवाय परमेश्वराय तत्पादपकजाश्रय निवेशिनि देविशासन देवते त्रिभुवन जन सक्षोभिणी त्रैलोक्य सहार कारिणि स्थावर जगम कृत्रिम विपम विषसहार कारिणि सर्वाभिचार कर्मापहारिणि पर विद्या छेदिनि पर मन्त्र प्रणाशिनि अष्टमहानाग कुलोच्चाटिनि कालदष्ट्र मृतकोत्थापिनी सर्व रोगापनोदिनी ब्रह्मा विष्णु रूद्रद चन्द्रा दित्य ग्रह नक्षत्र तारा लोकोत्पाद- .... भय पीडा प्रमदिनी त्रैलोक्य महिते भव्य लोक हितकरी विश्वलोक वशकरि महाभैरवि भैरव रूपधारिणि भीमे भीम रूपधारिणि महारौद्र रूपधाररिणी सिद्ध सिद्ध रूपवारिणि प्रसिद्ध सिद्व विद्याधर यक्ष राक्षस गरूड गधर्व किन्नर कि पुरुप दैत्योरगेन्द्रामर पूजिते ज्वाला माला कराले तत्तदिगन्तराले महामहिष वाहिनि त्रिशूल चक्र झप पाश शर शरासन फलवरद प्रदान विराजमान षोढशार्द्ध भुजे खेटक कृपाण हस्ते त्रैलोक्याकृत्रिम चैत्यालय निवासिनि सर्व सत्वानुकम्पनि रत्नत्रय महानिधि साख्य सौगत चार्वाक मीमासक दिगम्बरादि पूजिते विजयवर प्रदादिनि भव्यजन सरक्षिणि दुष्ट जन प्रमर्दिनि कमल श्री गृहीत गर्वावलिप्त ब्रह्मा राक्षष ग्रहापहारिणि शिवकोटि महाराज प्रतिष्ठित भीम लिंगोत्पाटन पटु प्रतापिनि समस्त ग्रहाकर्षिणि ( ग्रहानुबन्धिनि ग्रहानुछेदिनि ग्रह काला मुखि) नगर निवासिनि पर्वत वासिनि स्वयभूरमण वासिनि वज्र वेदिकाधिष्ठित व्यतरावास
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy