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________________ १८२ लघुविद्यानुवाद मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूहः ऐं नमः स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र को नव रात्रि मे सिद्ध करे । सिद्ध करते समय ब्रह्मचर्य व्रत पाले। एकासन करे, कषायो का त्याग करे, मन्त्र एकान्त मे अखण्ड दोप, धूप, पूर्वक साढे बारह हजार जप करना, फिर एक माला नित्य फेरने से प्रानन्द से दिन जायगा, रोजी मिलेगी। मन्त्र सिद्ध हो जाने पर कार्य काल मे इस मन्त्र का २१ बार जप कर व्याख्यान देवे तो श्रोता मोहित होते है । २१ बार जप कर वाद विवाद करे तो जय प्राप्त हो । कोर्ट मे मजिस्ट्रेट के सामने इस मन्त्र का २१ बार जप कर बोले तो मुकदमे मे अपनी विजय हो। पर गाव मे रोजी के निमित्त जाने के पहले प्रवेश के समय जलाशय के किनारे बैठ कर एक माला फेर कर प्रवेश करे तो व्यापार मे लाभ मिले। सर्व कार्य सिद्ध हो। इस मन्त्र का ७ बार जाप करते हुए अपने मुह पर हाथ फेरने से शत्रु की पराजय होती है। मन्त्र के अन्त मे स्वाहा पूर्वक शत्र का नामोच्चारण करता जाय । इस मन्त्र से २१ बार सिर को मन्त्रित करे तो सिर दर्द होता है । इस मन्त्र से २१ बार पानी मन्त्रित कर पिलाने से पेट का दर्द दूर होता है। इस मन्त्र को पढता जाय और भस्म उतारता जाय तो बिच्छू का जहर दूर होता है। मार्ग मे चलते समय जप करता जाय तो व्याघ्रादिक का भय नहीं होता है। मन्त्र -~ॐ अर्ह मुख कमल वासिनी पापात्म क्षयं करी वद २ वाग्वादिनी सरस्वती एं ह्रीं नमः स्वाहा। विधि -इस मन्त्र का शुद्धिपूर्वक ब्रह्मचर्यव्रत पालते हुए अखण्ड दीप धूप विधान पूर्वक एक लाख जप करना, फिर दशास होम करना, होम करने मे धूप इस प्रकार की चीजो का बनाना नारियल, खोपरे के टुकड, १ कपूर, खोरक, (छहारा), मिश्री, गुग्गुल, अगररताजणी घृत, गुड, चन्दन । इस प्रकार की सामग्री की धुप बना कर हवन करे तब स्वप्न मे देव अथवा देवी आकर वरदान देगे। मन्त्र सिद्ध हो जाने के बाद विद्या बहत पाती है। व्याख्यान मे चतुरता होती है। मन्त्र :-नमि ऊरण असुर सुर गरूल भुयंग परिवंदिये गय किले से अरि हे सिद्धायरिय उवज्झाय सव्व साहूरणं नमः । विधि -इस मन्त्र का जप नित्य एक सौ इक्कीस बार उत्तर दिशा की ओर मुख करके करे, दीप धूप रखने से मन्त्र की शक्ति बढती है। जतनपूर्वक उपयोग स्थिर रखना, जब जप पूरा
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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