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________________ लघु विद्यानुवाद मन्त्र :- ॐ चिटि पिटि निक्षीज ३ । विधि :- अनया सप्त वारपरिजप्य दष्टयें परि निक्षिपेत्तक्षरणा निर्विषो भवति । मन्त्र :- ॐ चलि चालिनी नीयतेज ३ । १५६ विधि - इस मंत्र को ७ बार जप कर हाथ को सर्प खाये हुये व्यक्ति के ऊपर ( दापयेत् ) फिर पानी को माथे पर डालने से निर्विष हो जाता है । मन्त्र — ॐ चंद्रिनी चंद्रमालिनीयते ज ३ । विधि : - इस मंत्र से पानी को ५ बार मंत्रित करके सर्पदृष्टा को स्नान कराने से १०० योजन चला जाता है और निर्विष हो जाता है । मन्त्र :- उत्तरापथ पिप्पिलि सहि वसह ज ( ग ) पडरक्वसि विसऊ ढइ विमुप थरइ विसु प्राहारि करेइ जं जं चक्खइ सयतु विसुतं सयलु निरु विसु होइ अरे विस दी उदिट्ठि बधउ गंट्ठि लयउ मुट्ठि ॐ ठः ठः । मीणा मन्त्र :- छ हार कारनेखार ठं ठं ठं ठं कार ठः ठः ठरे विष । विधि - उर्द्ध स्वासेन सीत्कार कुर्वताऽ नेन मन्त्रेण वार १०८ जल मभि मत्र्य भक्षित गढतर विषय पुरुषादि पानीय पाप्यते सिच्यतेऽवश्य विष वमति अस्य मन्त्रस्य पूर्व साधना । मन्त्र विधि :- प्रतिवर्ष वार १ / १ एव क्रियते निब काष्टे पट्टि काया नि व चन्दना क्षरै मन्त्रो लिख्यते निव पुष्पै निव चन्दनेन पूज्यते निव छविश्चो ड्राह्मते वार १०८ मन्त्र जप्यते प्रतिवर्ष वार १/१ अनेन विधिना पट्टित सिद्धिस्यात । -- - श्रह घोरणसविज्जाए मंतहि जवंति सत्तवाराउ पच्छपि बंति तोयं पटंति नमो श्री घोण से हरे हरे वरे वरे रांरीं री रु रु रौ रौ रस रस क्षू क्षू घोरण से घः ५ सः ५ हः ५ वः ५ ढ़ ५ ठः ५ क्ष्मी क्ष् क्ष्मौ क्ष्मः क्ष्मां री शोष य २ ठः ३ यह घोरसा विज्जा १ मंतोयं ॐ तरे तरे वः वः वल बल लां लां रां ही २ हां भगवती श्री ग ५ वर विहंगम नुजे क्ष्मां श्री घोण से स्वाहा । विधि :- यह पठित सिद्ध मंत्र है इस मंत्र से सर्व कार्य की सिद्धि होती है । सर्व प्रकार के विपर होते है | सर्व प्रकार के रोग दूर होते है ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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