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________________ १५६ लघुविद्यानुवाद मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्लीं ह्र. श्री गज मुख यक्षराज आगच्छ मम कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ॐ ह्रां कों क्षी ही क्ली ब्लूद्रां द्री ल्या हम्व्यं भव्य स्म्ल्व्य दम्लव्य ल्व्यू म्ल्यू स्म्ल्यू छ्म्ल्व्य म्व्यूबम्ल्यू लव्य ज्वालामालिनी सर्व कार्याणि कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का नित्य ही स्मरण करने से सर्व उपद्रव शान्त होते है। मन्त्र -ॐ वीर वीर महावीर अजिते अपराजित अतुल बलपराक्रम त्रैलोक्य रण रंग मल्ल गजित भवारि मल्लऊ दुष्ट निग्रहं कुरु कुरु मूर्धान् मा क्रम्य सर्व दुष्ट ग्रह भूत पिशाच शाकिनी योगिनी रिपुयक्ष राक्षस गंधर्व नर किनर महोरग दुष्ट व्याल गोत्रप क्षेत्रप दुष्ट सत्व ग्रहनि ग्रहाण निग्रन्होया २ ॐ चुरु चुरु मुरु मुरु दह दह पच पच मर्दय मर्दय त्राडय २ सर्व दुष्ट ग्रहं ॐ अहं अर्हद्भगवद्वीरो अतुलवल वीरो निन्हिया दत्र स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से अक्षत २१ बार मन्त्रित कर घर मे डालने से घर मे किसी प्रकार का उपद्रव नही होता है। मन्त्र :-अरहंतारणं जिरणारणं भगवंतारणं महापभावारणं होउ नमो ऊ माई साहि तो सव्व दुःक्ख हरो, जोहि जिणाणपभावो पर मिट्ठीणंच जंच माहप्पं संधामि जोणु भावो अवयर उजलं मिसोइथ । विधि -इस मन्त्र से २१ बार पानी मन्त्रित कर पिलाने से सर्व प्रकार के उपद्रव शात होते है । मन्त्र .-ॐ असि पाउसा नमः स्वाहा ॐ अरिहोति लोय पुज्जो सत्त भय विवज्जिऊ परम नाणी अमर नर नाग महिऊ अणाइ निहरणो सिवंदेउ ॐ विजये जभ थंभे मोहे हृः स्वाहा । विधि -इय विद्या यस्य डिभस्य वध्यते तस्य दता सुखे नायाति। . मन्त्र -ॐ ह्रीं ली क्षी म्री श्री हे हे हर हर अमुकं महाभूतेन गुन्हापय २ लय लय शीघ्रभक्ष भक्ष खाहि खाहि हैं फटी।। इस मन्त्र की विधि नही है, भडारित करदी गई है।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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