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________________ १४४ विधि लघुविद्यानुवाद - इस मन्त्र को विशेषत कुवार पूर्णिमा ( शरद पूर्णिमा ) को चन्द्रमा के सामने मुख करके जप किया जाता है । और करीब १००० बार जपने से ज्ञान का प्रकाश होता है । एक माला नित्य जपने से पाप कालिमा दूर होती है, मन स्वस्थ्य होता है । मन्त्र :- ॐ श्रीं श्रि श्र श्रः झां झीं भू भूः रिरुरः ह्रां ह्रीं ह्रः धू ध्रः स्वाहा । विधि - सिह का उरण जल इमेण मन्त्रेण सत्तरियत्त थभेइ पली वयरण दिव्व च करेही घोएहि । मेघमाला प्रवक्ष्यामि । जा सग्रहुती अवतरती गज्जती श्रमीयधाराहि वरि सती मेघमाला वुच्चहि परम कल वारणु करणु करिति वइ सान रुघभती जवीउति । तुह विधि - इमेण मत्रेण पाणिय पवर घोउरण जाहु जलणे सिहि इमष्ये निरासको । मन्त्र :- ॐ नमो भगवते महामाए श्रजिते अपराजिते त्रैलोक्य माते विद्य से सर्व भूत भयावहे माए माए श्रजिते वश्य कारिके भ्रम भ्रमिरिण शोषिणि ध्रुवे कार ललति नेत्राशनि मारणि प्रवाहरिण रण हारिणि जए विजय जं भंनि खगेश्वरी खगे प्रोखे हर हर प्रारण विखिरणी खिखिरणी विधून विधून वज्ज्र हस्ते शोषय शोषय त्रिशुल हस्ते षट्वांग कपाल धारिणि महापिशित मार्स सिनि मानुषाद्ध चर्म प्रावृत शरीरे नर शिर मालां ग्रंथित धारिणी निश्रभिनि हर हर प्राणानु मर्म छेदिनि सहस्त्र शीर्षे सहस्त्र वाहने सहश्र नेत्रे हे ह्व धुधुछ छ जी जी ही हो त्रित्रि ख ख हसनी त्रैलोक्य विनाशिनि फट् फट् सिंह रूपे खः गज रूपे गः त्रैलोक्यो दरे समुद्र मेखले गृन्ह गृह फट् फट् है है हुं हुं हन हन माए भूत प्रसवे परम सिद्ध विद्य हः हः हुं हुं फट् फट् स्वाहा । विधि - सूर्य ग्रहण अथवा चन्द्र ग्रहण में उपवास करके इस मन्त्र को १०८ बार जाप करे मन्त्र तब सिद्ध होता है, फिर इस मन्त्र का २१ बार स्मरण करने से राजा, मन्त्री नर, नारी, जो कोई भी हो सबका आकर्षण होता है । सब वश मे होगे । जिस किसी दुष्ट : के नाम से जपे तो उसका श्रवश्य ही भागना होता है । रण मेवा, राजकुल मे, वाद में, विवाद मे इस विद्या का स्मरण करने से अजय होता है । और पुष्पादिक मन्त्रित करके, जिसको भूत, प्र ेत, शाकिन्यादि से लगा हो, उस पुरुष के ऊपर डालने से भूतादिक प्रकट होते हैं । बहुत क्या कहे सर्व अभिष्ट सिद्ध होता है ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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