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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ श्री वीर हनुमंत मेघ घर त्रय त्रावय सानर नानगण २ देवगर २ भेदगरण ततो सार्वय सानर लहरि हिमाल जसुपाउदिय उतसु कछ मीथाइ जलं थाइ सीतलं जलत श्री हनूवत केरी आज्ञा वापु वीर ।
विधि
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बार २१ स्मरताय छिरसि हस्तो दीयते सो शुद्धोपि दिव्ये श्रुध्यति न सदेहो । यावति क्षेत्रे दृष्टि, प्रसरति तावति क्षेत्रे एत स्मरतो दिव्य श्रृद्धि. ।
विधि :- अय मन्त्रो बार १०८ स्मृत्वा चूरि गृह्यते न दह्यते यदा अन्योगाहते तदा वार २१ चुरिस मुख निरीक्ष्य स्मर्यते सोपि न दह्यते पर चुरौ दृष्टि र्धरणीया ।
मन्त्र :- ॐ सिद्धि ज्वला मती मोघामती कालाग्नी रुइ शीतलं जलत श्री हनुवंत पयमय वज्र लोह मयी तिल्ल नास्ति श्रग्निः ।
विधि
— अय मन्त्रो बार १०८ स्मृत्वा गोल का गृह्यतेऽन्य पार्वाद्विलोकयता ग्राह्यते सोपिन दह्यते ।
मन्त्र :- ॐ नमो सुग्रीवाय अनंत योग सहस्त्राय श्रखारणा श्राविया हनु दहु जलु २ प्रज्वलु २ भेदउ २ छेद २ सोसउ २ प्राप विद्या राखउ पर विद्या छेद प्रत्यंगिरा नमोस्तु सुग्रीव तरणी श्राज्ञा फुरइ ठः ठः
स्वाहा !
विधि
--- बार २१ स्मृत्वा चुरि गोलक दिव्यो शुद्धि यति । अक्षतान् बार २१ जपित्वा ऽपर पार्श्वच्चुरि गोलक धमने क्षेप्पत्त स्व परयो श्रुद्धिः दृष्ट प्रत्ययः ।
मन्त्र :- ॐ अणि
हणुवंतु वंधउ हणुवंति मूकी
बंध उधार वंद्यउ वालिस
लाल अणि बंधउ किधार ।
विधि - श्रनेन मन्त्रेण वार २१ धारा जप्पते खड्ग को धारा बध' ।
मन्त्र :–श्रार धार खांडउ कयर तु प्राणिउ लोहु बंधु वधउ वाप प्रचंड नारस्थंह को शक्ति ।
विधि :- बार ७ खड्गा दोना धारा वध' ।
मन्त्र – धुलि २ महा धुलि धुलि दर्शणि न फट्टइ घाउ सुमरंतह वज्रा सरि
पाउ ।
- एक विशति वार चतुप्पथ धूलिमभिमत्र्य प्रहारे दीयते भद्रो भवीत न संशयः ।