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________________ लघुविद्यानुवाद ११३ विधि :-इस मन्त्र को ३ बार जपकर भोजन करने के लिये बैठने से मक्खियाँ नही आती है और सर्व प्रकार के वात रोग नष्ट होते है । मन्त्र :- ॐ एहि नंदे महानंदे पंथे खेमं भविस्सइ पंथे दुपयं बंधे पंथे बंधे चउपयं घोरं पासीविसं बंधे जाव गंठी न छुटइ स्वाहा । ॐ नमो भगवऊ पार्श्वनाथाय द्वयं धरणेन्द्राय सप्तफरण विभूषिताय सर्व वात सर्व लूतं सर्व दुष्टं सर्व विषं सर्व ज्वर नाशय नाशय त्रासय त्रासय छिद छिद भिंद भिंद हूं फट् स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से पानी २१ बार मन्त्रित करके देने से दृष्टि ज्वरादिक शात होते हैं । मन्त्र :-ॐ ह्रीं विजय महाविजये सर्व दुष्ट प्रणाशिनी महांत मुख भंजनि ॐ ह्रीं श्रीं भ्रीं कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-इस मत्र को १०८ बार जपे। मन्त्र -ॐ ह्रीं ज्वी लाह्वापलक्ष्मी चल चल चालय चालय स्वाहा । विधि -कृष्णाष्टभ्या चतुर्दश्या वा उपोषितेन् सहस्त्र १००८ जाप्य:--ततासाधिते सर्व स्वपने कथयति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं बाहुबलि प्रलंब बाहु बलिगिरि बलिगिरि महागिरि महागिरि धीर बाहुवले स्वाहा । ॐ प्रचंड बाहुबलि क्षां क्षीं झूक्ष क्षौ क्षः उर्द्ध भुजं कुरु कुरु सत्यं ब्रू हिब्रू हि स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को कायोत्सर्ग १०८ जाप्यः । मन्त्र :-ॐ ज्जी ह्रां ह्रीं ह्र नमः । विधि :-बार ३३ जाप्ये राजकुले तेज आगछति । मन्त्र :-ॐ स्वैरिणी २ स्वाहा । विधि .-पूगीफलादिक वार १०८ जपित्वायस्य दीयत्ते स वश्यो भवति । मन्त्र :-ॐ नमो अरहंतारणं अरेअररिण म्हारिणि मोहिणी २ मोहय २ स्वाहा । विधि : जिन प्रायतन मे इस मन्त्र को १०८ बार जपे फिर फलादिक को ७ बार मन्त्रित कर जिसको दिया जाय वह वश मे हो जाता है।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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