________________
११०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ जहि हुंधरणि सरजिइत्तछ हु धरी सरत्ति जाहरण वंत किल किय उगइ न श्रावाइति ॐ फट् स्वाहा । एकल्ल सुन्दरि हेलिविसु संवर्ग सुन्दरि हरहि विषु न दृष्टि दिसु न प्रदृष्टि विसु मन्त्र कइ जं जंकार इति निसारणक शब्द त्रिभुवने नास्ति विसु ।
/
विधि :- मयण हल मूल काष्ट बार ७ जपित्वा निशान च बार ७ जपित्वा निसारण काष्टे ना हन्यते यत्र २ शब्द' श्रुयते तत्र २ स्थावर विष न प्रभवति ।
मन्त्र
- अस्ति तिउडि मइ चलति पत्ती ठी बहरी काल मेघ मइ श्रावत दीट्ठि दाडिमल्ल सव कहा जग हिल्ली मोर तु त्रात्रु तोरतु भरकु मइ दी एह उत्तर लीयउ तु हु श्रागइ पाड कहि जन जाइ आदि तउ श्रत इदीन्हनु प्राथ वतइ लइ वात कहि वा काल मेघ वहिरी की शक्ति अ
ल ल ल ल ल ।
विधि :- काच शरावे पूतलक श्मसाने कोइलेन लिखीत्वा वार ७ पुष्प जपित्वा २ सप्तपुष्प
के
यावत्पूज्यते गुगुल गुलिका चउ दाह्यते दिन ७ यावत् रात्रौ विधान एक जाति पुष्पाणि ग्राह्याणि ततोयन्नाम्ना जप्यते स क भवति । पानीयस्थाने य मधुरजले, क्षिप्ते सुस्थो भवति । पर प्राक्प्रार्थ्यते जतु हतु स्वामिनि मेल्हा वतु तदामोच्यः श्रन्यो मोर्चायितु न
शक्य |