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________________ लघुविद्यानुवाद फलम् :- विपरीत कार्येऽङ्गन्यासः शोभन कार्ये वज्रपञ्जर स्मरेत तेन रक्षा । अपराजित विद्या :- ॐ णमो अरिहतारण, णमो सिद्धाण, णमो श्रायरियाण, रामो उवज्झायाण णमो लोए सव्यसाहूण ह्री फट् स्वाहा || फलम् : - इत्योषोऽनादि सिद्धोऽयं मन्त्र - स्याच्चितचित्रकृत इत्येषा पचाङ्गी विद्याध्याता कर्मक्षय कुरुते || परमेष्ठी बीज मंत्र — ॐ तत्कथमिति चेत् ग्ररिहता, असरीरा प्रायरिया तह उवज्झाया मुरिणा पढमक्ख (र) रिप्पण्णो ( ण्णो ) ॐ कारोय पञ्च परमेष्ठी || कसेदी [ ] इति जेनेन्द्र सूत्रेण अ - अ इत्यस्य दीर्घा अ आ पुनर्रापि दीर्घ उ तस्य पररुप गुण कृते प्रीमिति जाने युनरपि मोदर्व चन्द्र [ ॐ ] इति सुत्रेणानुसारेणानुम्वारे सति सिद्ध पञ्चाङ्ग मन्त्र निष्पद्यते || प्रथम रक्षा मन्त्र :- ॐ रामो अरहताण शिखायाम् । यह पढकर सारी चोटी के ऊपर दाहिना हाथ फेरे । ॐ णमो सिद्धाण - मुखावरणे । यह पढकर सारे मुख पर हाथ फेरे । ॐ गमो आयरियाण - अङ्ग रक्षा | ૪૫ यह पढकर सारे अग पर हाथ फेरे । ॐ गमो उवज्झायाण आयुध । यह पढकर सामने हाथ से जैसे कोई किसी को तलवार दिखावे, ऐसे दिखावे । ॐ णमो लोए सव्वसाहूण - मौर्वी । बिछा यह पढकर अपने नीचे जमोन पर हाथ लगाकर और जरा हिलाकर जो ग्रासन हुआ है, इसके इधर-उधर यह ख्याल करे कि मै वज्र शिला पर बेठा हूँ, नीचे से बाधा नही हो सकती। सव्वपावप्पणसाणो-वज्रमय प्राकाराश्चतुर्दिक्षु यह पढकर अपने चारो तरफ अगुली से कुण्डल सा खींचे यह ख्याल कर ले कि यह मेरे चारो और वज्रमय कोट है । मगलाण च सव्वेसि - शिखादि सर्वत प्रखातिका । यह पढकर यह ख्याल करे कि कोट के परे खाई है । पढमहवई मंगल प्राकारोपरि वज्रमय टकारिणकम् । इति महा रक्षा सर्वोपद्रव विद्राविणी । यह पढकर वह जो चारो तरफ कुण्डली खीचकर वज्रमय काट रचा है उसके ऊपर चारो तरफ चुटकी बजावे । इसका मतलब है कि जो उपद्रव करने वाले है वे सब चले जावे । मैं वज्रमयी कोट के अन्दर व वज्रशिला पर बैठा हूँ । इस रक्षा मन्त्र के जपने से जाप
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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