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________________ कुरल काव्य थिरुक्कुरल तिरुवल्लुवर कृत थिरुक्कुरल मुक्तक शैली में लिखित एक ऐसा नीति काव्य है, जिसका वर्ण्य विषय सार्वजनिक है। इसकी लोक प्रियता इसी तथ्य से सिद्ध है कि इसे वैदिक एव ईसाई भी अपना अपना धर्म नीति ग्रन्थ मानकर उसे समान रूप से पूज्य मानते आये हैं। दक्षिण भारत में तो इसे पंचमवेद या तमिलवेद की मान्यता प्राप्त है । प्रस्तुत ग्रंथ का वर्ण्य विषय 108 परिच्छेदों में विभक्त है। प्रत्येक परिच्छेद 10-10 पद्यों में विभक्त है। इस प्रकार इसमें 1080 पद्म उहै। उनमें स्वस्थ्य समाज राष्ट्र के निर्माण हेतु जिन शिक्षाओं की अनिवार्यता है उनको पद्यवद्ध शैली में प्रस्तुत किया गया है जैसे- गृहस्थाश्रम (5), अतिथिसत्कार ( 9 ) मधुर भाषण ( 10 ), कृतज्ञता (11). परोपकार ( 22 ) निरामिश जीवन ( 26 ), अहिंसा ( 33 ) योग्य पुरुषों की मित्रता ( 45 ) सभा में प्रौढ़ता (63) आदि आदि । I प्रस्तुत ग्रन्थ तलिम भाषा में लिखित है। इसके प्रणेता के विषय में विद्वानों में मतभेद है किन्तु प्रो० ए० चक्रवर्ती ने प्रस्तुत ग्रन्थ में "एलाचार्य" उपाधि की खोजकर इसे आचार्य कुन्दकुन्द कृत माना है और उनका साधना स्थल मलय पर्वत (आन्ध्रप्रदेश) के पो नूरमलै नामक ग्राम की नीलगिरि पर्वत को माना है जहाँ उनकी चरण पादुकाऐं उपलब्ध हुई हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के महामंत्री एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री लक्ष्मीचन्द्र जी जैन ने इसमें अहिंसा, दया, संयम, पशु-बलि- निषेध, सर्वज्ञ जितेन्द्रिय, जिन धर्मचक्र आदि के प्रयोगों से इसे जैन ग्रन्थ सिद्ध किया है। तमिल साहित्यकार श्री के. एन. सुब्रह्मण्यम् ने भी उक्त ग्रन्थ को कुन्दकुन्दाचार्य कृत मानकर अपना शोधकार्य किया था, जो आंग्ल भाषा में के नाम से भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली से प्रकाशित है । - प्रस्तुत ग्रन्थ की उपयोगिता को देखते हुए आज से लगभग छह दशक पूर्व महरौनी (ललितपुर) निवासी प्रज्ञाचक्षु पं गोविन्दराय जी ·
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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