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________________ कुरल काव्य परिच्छेदः 903 कुलोम्मति 1 - मनुष्य की यह प्रतिज्ञा कि "मैं अपने हाथों से मेहनत करने में कभी न थकूँगा ।" उसके परिवार की उन्नति में जितनी सहायक होती है उतनी और कोई वस्तु नहीं । 2- श्रम भरा हुआ पुरुषार्थ और कार्यकुशल सदबुद्धि इन दोनों की परिपक्वपूर्णता ही परिवार को ऊँचा उठाती है। 3- जब कोई मनुष्य यह कहकर काम करने पर उतारू होता है कि मैं अपने कुल की उन्नति करूँगा तो स्वयं देवता लोग अपनी अपनी कमर कसकर उसके आगे आगे चलते हैं। 4- जो लोग अपने कुटुम्ब को ऊँचा उठाने में कुछ उठा नहीं रखते वे इसके लिए यदि कोई सुविस्तृत युक्ति न भी निकालें तो भी उनके हाथ से किये हुए काम में सिद्धि होगी। 5- जो आदमी बिना किसी अनाचार के अपने कुल को उन्नत बनाता है, सारा जगत उसको अपना मित्र समझेगा। 6- पुरुष का सच्चा पुरुषत्व तो इसी में है कि जिसमें उसने जन्म लिया है उस वंश को धन में बल में और ज्ञान में ऊँचा बनादे । 7- जिस प्रकार युद्धक्षेत्र में आक्रमण का प्रकोप शूरवीर पर पड़ता है ठीक इसी तरह परिवार के पालन-पोषण का भार उन्हीं कन्धों पर आता है कि जो उसके बोझ को सम्भाल सकते हैं। 8- जो लोग अपने कुल की उन्नति करना चाहते हैं उनके लिए कोई समय बे समय नहीं है और यदि वे असावधानी से काम लेंगे तथा अपनी झूठी शान पर अड़े रहेंगे तो उनके कुटुम्ब को नीचा देखना पड़ेगा। 9- क्या सचमुच उस आदमी का शरीर कि जो अपने परिवार को हर प्रकार की विपत्ति से बचाना चाहता है, सर्वथा परिश्रम और कष्टों के लिए ही बना है ? 10- जिस घर में सम्भालने वाला कोई योग्य आदमी नहीं है. आपत्तियाँ उसकी जड़ को काट डालेंगी और वह मिट्टी में मिल जायेगा । 315
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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