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________________ प्लुरल काव्य परिच्छेदः १09 निरूपयोगी धन 1- जिस आदमी ने अपने घरमें ढेर की ढेर सम्पति जमा कर रक्खी है पर उसे उपयोग में नहीं लाता उसमें और मुर्दे में कोई अन्तर नही है, क्योंकि वह उससे कोई लाभ नहीं उठाता हैं ! 2- यह कंजूस आदमी जो समझता है कि धन ही संसार में सब कुछ है और इसलिए बिना किसी को कुछ दिये ही उसे जमा करता है वह अगले जन्म में राक्षस होगा । 3- जो लोग धन के लिए सदा ही हाय हाय करते फिरते हैं पर यशोपार्जन करने की परवाह नहीं करते उनका अस्तित्व पृथ्वी के लिए केवल भार स्वरूप है । 4- जो मनुष्य अपने पडोसियों के प्रेम को प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करता वह मरने के पश्चात् अपने पीछे कौन सी वस्तु छोड़ जाने की आशा रखता है 5- जो लोग न तो दूसरों को देते हैं और न स्वयं ही अपने धन का उपभोग करते हैं वे यदि करोडपति भी हों तब भी वास्तव में उनके पास कुछ भी नहीं है। 6. संसार में ऐसे भी कुछ आदमी हैं जो धन को न तो स्वयं भोगते हैं और उदारता पूर्वक योग्य पुरुषों को प्रदान करते हैं, वे अपनी सम्पत्ति के लिए रोग स्वरूप है। 7 ... जो धनिक आवश्यकता वाले को दान देकर उसकी आवश्यकता को पूर्ण नहीं करता उसकी स्मति उस लावण्यमयी ललना के समान है जो अपने यौवन को एकान्त निर्जन स्थान में व्यर्थ गँवाये देती है। B- उस आदमी की सम्पत्ति, कि जिसे लोग प्यार नहीं करते गाँव के बीचों बीच किसी विष-वृक्ष के फलने के सम्मान है : 9- धर्माधर्म का विचार न रखकर और अपने को भूखों मार कर जो धन जमा किया जाता है वह केवल दूसरों के ही काम में आता है । 10-- उस धनवान मनुष्य की क्षीणस्थिति कि जिसने दान दे देकर अपने खजाने को खाली कर डाला है, और कुछ नहीं, केवल जल वर्षाने वाले बादलों के खाली हो जाने के समान है। यह स्थिति अधिक समय तक न रहेगी ! W 311
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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