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________________ ज, कुशल काव्य शरत परिच्छेदः ८९ घर का भेदी 1-कुंजवन और पानी के फुब्बारे भी कुछ आनन्द नहीं देते यदि उनसे बीमारी पैदा होती है. इसी प्रकार अपने नातेदार भी विट्वेय योग्य हो जाते हैं जब कि वे उसका सर्वनाश करना चाहते हैं। 2-उस शत्रु से अधिक डरने की जरूरत नहीं है कि जो नंगी तेलवार की तरह है किन्तु उस शत्रु से सावधान रहो कि जो गित्र बनकर तुम्हारे पास आता है। 3-अपने गुप्तवैरी से सदा सजग रहो क्योंकि संकट के समय वह तुम्हें कुम्हार की डोरी के समान बड़ी सफाई से काट डालेगा। 4-यदि तुम्हारा कोई ऐसा शत्रु ई कि जो भित्र के रूप में घूमता फिरता है तो वह शीघ्र ही तुम्हारे साथियों में फूट के बीज बो देगा और तुम्हारे शिर पर सैकड़ों बलाऐं ला डालेगा। 5. जब कोई भाई बन्धु तुम्हारे प्रतिकूल विद्रोह करे तो वह तुम पर अनगिनते संकट ला सकता है यहाँ तक कि उनसे स्वयं तुम्हारे प्राण सकट मे पड़ जादेंगे। -जब किसी राजा के दरबार में छल कपट प्रवेश कर जाता है तो फिर यह असंभव हैकि एक न एक दिन वह उसका स्वयं भक्ष्य न बन जाय। 7-जिस घर में भेदवृत्ति पड़ गई वह उस वर्तन के समान है जिसमें दक्कन लगा हुआ है, यद्यपि वे दोनों देखने में एक से मालूम होते हैं फिर भी चे एक कभी नहीं हो सकते। __B- देखो जिस घर में फूट पड़ी हुई है वह रेली से रेले हुए लोहे के समान कण कण होकर धूल में मिल जायेगा। 9--जिस घर मे पारस्परिक कलह है सर्वनाश उसके शिर पर लटक रहा है फिर वह कलह चाहे तिन में पड़ी हुई दरार की तरह ही छोटा क्यो न हो। 10-देखो जो मनुष्य ऐसे आदमी के साथ बिना मान सम्मान के व्यवहार करता है कि जो मन ही मन में उससे द्वेष रखता है, वह उस मनुष्य के समान है जो काले नाग को साथी बनाकर एक ही झोपड़ी में रहता है। 1287....................
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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