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________________ कुरल काव्य परिच्छेदः ८७ की परख शत्रु बलशाली के साथ तुम, मत जूझो मतिधाम । किन्तु भिड़ो बलहीन से, बिना लिये विश्राम ||१|| जो अशक्त असहाय नृप, रखे तया निठुराई । कौन भरोसे वह करे, अरि पर कहो चढ़ाई || २ || धैर्य, बुद्धि, औदार्यगुण, और पड़ोसी - मेल । मिलें नहीं जिस भूप में, उसका जय अरिखेल || ३ || कटुक प्रकृति के साथ में, जो नृप बिना लगाम । अधोदृष्टि सर्वत्र वह, सर्वघृणा का धाम ||४|| दक्ष न हो कर्तव्य में, रक्षित रखे न मान । राजनीति से शून्य नृप, अरि का हर्षस्थान ||५|| लम्पट या क्रोधान्ध नृप, होता प्रतिभाहीन । वैरी उसके पैर के स्वागत को आसीन || ६ || P कार्य पूर्व में ठान जो, करे उलट सब काम । चैर करो उस भूप से, चाहे देकर दाम ||७|| मिले न सद्गुण एक भी, जिसमें दोष अनेक । अरि-मुद-वर्धक भूप यह, रखे मित्र क्या एक ॥८॥ भूढ़ तथा भयभीत से, शत्रु करे यदि युद्ध । उसका हर्ष समुद्र तब, रहे न सीमारुद्ध || ६ || · मूढ़-पड़ोसी राज्य से लड़े नहीं जो भूप । करे नहीं जय यत्न भी मिलता उसे न रूप ||१०|| 282
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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