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________________ ज, कुभल काव्य - परिच्छेदः ७६ मित्रता 1-जगत में ऐसी कौन सी वस्तु है जिसका प्राप्त करना इतना कठिन है जितना कि मित्रता का ? और शत्रुओं से रक्षा करने के लिए मित्रता के समान अन्य कौन सा कवच है ? 2--योग्य पुरुष की मित्रता बढ़ती हुई चन्द्रकला के समान है, पर मूर्ख की मित्रता घटते हुए चन्द्रमा के सदृश्य है। 3-सत्पुरुषों की मित्रता दिव्यग्रन्थों के स्वाध्याय के समान है। जितनी ही उनके साथ तुम्हारी घनिष्टता होती जायेगी उतने ही अहि. क रहस्य तुम्हें उनके भीतर दिखाई पड़ने लगेंगे। 4. मित्रता का उद्देश्य हँसी-विनोद करना नहीं है, बल्कि जब कोई बहक कर कुमार्ग में जाने लगे तो उसको रोकना और उसकी भर्त्सना करना ही मित्रता का लक्ष्य है। 5- चार बार मिलना और सदा साथ रहना इतना आवश्यक नहीं है. यह तो हृदयों की एकता ही है कि जो मित्रता के सम्बन्ध को स्थिर और । सुदृढ़ बनाती है। 6-हँसी--मरकरी करने वाली गोष्ठी का नाम मित्रता नहीं है. मित्रता तो वास्तव में वह प्रेम है जो हृदय को आल्हादित करता है। 7-जो मनुष्य तुम्हें बुराई से बचाता है. सुमार्ग पर चलाता है और जो संका के समय तुम्हारा साथ देता है बस वही मित्र है। दखो. उस आदमी के हाथ कि जिसके कपड़े हवा से उड़ गये है, कितनी तेजी के साथ फिरसे अपने अंग को ढकने के लिए फुर्ती करता है ? यह सन्चे मित्र का आदर्श है जो विपत्ति में पड़े हुए मित्र की सहायता के लिए दौड़कर आता है। -मित्रता का दरबार कहाँ पर लगता है 1 बस वहीं पर कि जहाँ दो हृदयों के बीच में अमन्य प्रेम और पूर्ण एकता है तथा दोनों मिलकर हर एक प्रकार से एक दूसरे को उच्च और उन्नत बनाने की चेष्टा करें। __10-जिस मित्रता का हिसाब लगाया जा सकता है उसमें एक प्रकार का कालापन होता है । वे चाहे कितने ही गर्वपूर्वक कहें कि मैं उसको इतना प्यार करता हूँ और वह मुझे इतना चाहता है। 267-..-..-- --.- - - - -..
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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