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________________ कुरल काव्य परिच्छेदः ७७ सेना के लक्षण ** शिक्षित, दृढ़, अतिकष्ट ने, जिसे न व्यापे देख | नृपसंग्रह में श्रेष्ठ जो, वह है उत्तम सैन्य || १|| अनगिनते अरि-वार हों, हो नैराश्य महान । फिर भी रखते चूर्णभट, रक्षा का अवधान ||२|| गर्जे यदि वे सिन्धु सम, तो गर्जो क्या हानि । भगते अहि-फुंकार से, सब मूँसे धर ग्लानि || ३ || भ्रष्ट न हो कर्तव्य से, जिसे न परिचित हार दिखा चुकी जो वीरता, वह ही सेना सार ||४|| कुपितकाल से युद्ध का, रखते हैं जो मान । वे ही रखते वीरवर, सेनापद का मान || ५ | लोकप्रतिष्ठा, वीरता, पूर्वरणों का ज्ञान । बुद्धि विभव ये सैन्य के, रक्षक कवच समान ||६|| ढूँढ़त फिरते वीरगण, वैरी को सब ओर । समझें वे अरि, वार कर हारेगा कर जोर ||७|| सज्जित यदि सेना नहीं, या धावे की स्फूर्ति । ओज तेज विद्या विभव, करते उसकी पूर्ति ॥ ८॥ न्यून नहीं संख्या जहाँ, और न अर्थाभाव । उस सेना के पथ में, रक्षित जय - सद्भाव ॥ ६ ॥ नायक बिना न कोई भी बनती सेना एक । यद्यपि उसमें हों भले, सैनिक वीर अनेक ||१०|| 262
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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