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________________ जा, कुरम काव्य कुरत्म काव्य - परिच्छेदः ७५ दुर्ग 1-दुर्बलों के लिए, जिन्हें केवल अपने बचाव की ही चिन्ता होती है. दुर्ग बहुत ही उपयोगी होते हैं, परन्तु बलता और प्रतापी के लिए भी वे कम उपयोगी नहीं है। 2-जल, प्राकार, मरुभूमि, पर्वत और सघन, ये सब नान, प्रकार के रक्षणात्मक सीमा--दुर्ग हैं। 3-ऊँचाई, मोटाई, मजबूती और अजेयपन ये चार गुण हैं, जो निर्माण केला की दृष्टि से किलों के लिए अनिवार्य हैं। 4-वह गढ़ सबसे उत्तम है. जो थोड़ी भी जगह भेद्य न हो. साथ ही विस्तीर्ण हो और जो लोग उसे लेना चाहें उनके आक्रमणों को रोकने की जिसमें क्षमता हो। 5-अजेयत्व, दुर्गस्थ सैन्य के लिए रक्षणात्मक सुविधा, रसद तथा अन्य सामग्री का प्रचुर मात्रा में संग्रह. ये सब दुर्ग के लिए आवश्यक बातें हैं। ___6..वही सच्चा किला है जिसमें हर प्रकार का सामान पर्याप्त परिमाण में विद्यमान हो और जो ऐसे लोगों के संरक्षण में हो कि जो किले को बचाने के लिए वीरतापूर्वक लड़ें। 1- निस्सन्देह वह सच्चा गढ़ है कि जिसे न तो कोई घेरा डालकर जीत सके, न अचानक हमला करके और न कोई जिसे सुरंग लगाकर ही तोड़ सके। 8-वही बास्तविक दुर्ग है जो अपने भीतर लड़ने वालों को पूर्ण बलशाली बनाता है और घेरा डालने वालों के अटूट उद्योगों को विफल कर देता है। ___-वही खरा दुर्ग है जो नाना प्रकार के विकट साधनों द्वारा अजेय बन गया है और जो अपने संरक्षकों को इस योग्य बनाता है कि वे बैरियों को किले की सुदूर सीमा पर ही मार कर गिरा सकें। 10-यदि रक्षक सैन्यवर्ग समय पर फुर्ती से काम न ले तो चाहे दुर्ग कितना ही सुदृढ़ हो किसी काम का नहीं। ₹259
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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