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________________ करल काम्य -जा कुबल काव्य पर परिचछेदः ६८ कार्य-संचालन निश्चय की ही प्राप्ति को, करते विज्ञ विचार । निश्चय ही जब हो चुका, फिर विलम्ब निस्तार' ।।१।। शीघ्र कार्य को शीघ्र ही, विबुध सज्ञान । पर विलम्ब सहकार्य तब, जब मन शान्तिविधान ।।२।। लक्ष्य ओर सीधे चलो, देख समय अनुकूल । चलो सहज वह भार्ग तब, जब हो वह प्रतिकूल ।।३।। अपराजित वैरी बुरा, और अधूरा काम । शेष-अग्निसम वृद्धि पा, बनते विपदा-धाम ।।४।। द्रव्य, क्षेत्र, साधन, समय, और स्वरूप विचार । करले पहिले, कार्य फिर, करे विबुध विधिवार ।।५।। श्रम इस में कितना अधिक, कितना लाभ अपूर्व । बाधा क्या क्या आयेंगी, सोचे नर यह पूर्व ।।६।। मर्मविज्ञ के पास जा, पूछो पहिले मर्म । कार्यसिद्धि के अर्थ यह, कहते विज्ञ सुकर्म ॥७॥ गज को गज ही फाँसता, वन में जैसे एक ।। एक कार्य वैसा करो, जिससे सथें अनेक ||८|| मित्रों के भी मान से, यह है अधिक विशुद्ध 1 करलो रिपु को शीघ्र ही, क्षोभ रहित मन शुद्ध ।।६11 भला नहीं चिरकाल तक, दुर्बल संकट ग्रस्त । इससे दुर्बल काल पा, करले सन्धि प्रशस्त ।।१०।। 42444
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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