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________________ जी, कुबल काव्य परपरिच्छेदः ६४ मंत्री 1-देखो, जो मनु महत्वपूर्ण छ. . ..पूर्ग:: समाद! करने के मागों और साधनों को जानता है तथा उनको आरम्भ करने के समुचित समय को पहिचानता है सलाह देने के लिए वही योग्य पुरुष है। 2-स्वाध्याय, दृढ़-निश्चय, पौरुष. कुलीनता और प्रजा की भलाई के निमित्त सप्रेम चेष्टा ये मन्त्री के पाँच गुण हैं। 3-जिसमें शत्रुओंके अन्दर फूट डालने की शक्ति है जो वर्तमान मित्रता के संबंधों को बनाये रख सकता है और जो वैरी बन गये हैं उनसे सन्धि करने की सामर्थ्य जिसमें है बस यही योग्य मंत्री है। 4-उचित उद्योगों को पसन्द करने और उनको कार्यरूप में परिणत करने के साधनों को चुनने की योग्यता तथा समाति देते समय निश्चयात्मक स्पष्टता ये परामर्शदाता के आवश्यक गुण हैं। 5-जो नियमों को जानता है तथा विपुल ज्ञान से भरा है जो समझ बूझकर बात करता है और जिसे प्रत्येक प्रसंग की परख है बस बही तुम्हारे योग्य मंत्री है। 6-जो पुस्तकों के ज्ञान द्वारा अपनी स्वाभाविक बुद्धि की अभिवृद्धि कर लेते हैं, उनके लिए कौन सी बात इतनी कठिन है जो उनकी समझ में न आ सके। 7-पुस्तक ज्ञान में यद्यपि तुम सुदक्ष हो फिर भी तुम्हें चाहिए कि || तुम अनुभव जन्य ज्ञान प्राप्त करो और उसके अनुसार व्यवहार करो। -सम्भय है कि राजा मूर्ख हो और पग पग पर उसके काम में अड़चने डाले फिर भी मंत्री का कर्तव्य है कि वह सदा वही राह उसे दिखावे कि जो नियग संगत और समुचित हो। 9-देखो. जो मंत्री मंत्रणा-गृह में बैठकर, अपने राजा का सर्वनाश करने की युक्ति चिता है, वह सप्तकोटि बैरियों से भी अधिक भयंकर है। 10-चंचलचित्तं का पुरुष सोचकर ठीक रीति निकाल भी ले पर उसे व्यावहारिक रूप देते हुए यह डगमगादेगा और अपने अभिप्राय को कभी पूरा न कर सकेगा।
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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