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________________ रत्र कात्म्य ज, करन कारला घर-- परिच्छेदः. ४ अवसर की परख उल्लू पर पाला विजय, जैसे दिन को काक । वैसे अरि पर भूप भी, विजयी अवसर ताक ।। १।। करलेना निजसाधना, देख समय को खास । मानो देना प्रेममय, भाग्यश्री को पास ।।२।। साधन अवसर प्राप्त कर, करले जो व्यवहार्य । , कार्य कुशल उस आर्य को, कौन असम्भव कार्य ॥३।। साधन अवसर की अहो, रखते परख विशेष । जीतोगे निजशक्ति से, यह ही विश्व अशेष ।।४॥ जय-इच्छुक हैं देखते, अवसर को चुपचाप । विचलित हो करते नहीं, सहसा कार्यकलाप ।।५।। हटकर मेढ़ा युद्ध में, करता जैसे चूर । कर्मठ भी वैसा दिखे, अकर्मण्य कुछ दूर ।।६।। क्रोध प्रगट करते नहीं, तत्क्षण ही धीमान । अवसर उसका ताकते, करके मनमें पान ।।७।। तब तक पूजो शत्रु को, जब तक उसका काल । जब हो अवनतिचक्र में, भू में मारो भाल ||८|| शुभ अवसर जब प्राप्त हो, करलो तब ही आर्य । निस्संशय हो शीघ्र ही, जो भी दुष्कर कार्य ।।६॥ अक्रिय बनता प्राज्ञनर, देख समय विपरीत । बकसम वह ही टूटता, जब देखे निजजीत।। १०। । - - - (206)
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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