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________________ कुरल काव्य परिच्छेदः ४७ विचार पूर्वक काम करना व्यय क्या अथवा लाभ क्या ? क्या हानि इस कार्य । ऐसा पहिले सोच कर करे उसे फिर आर्य ||१|| ऐसों से कर मंत्रणा, जो उसके आचार्य । राज्य करे उस भूप को, कौन असम्भव कार्य ||२|| लालपदे बहुलाभ का करदे क्षय ही मूल । बुध ऐसे उद्योग में, हाथ न डालें भूल || ३ || हँसी जिसे भाती नहीं करवानी निजनाम । बिना विचारे वह नहीं करता बुध कुछ काम ||४|| स्वयं न सज्जित युद्ध को, पर जूझे कर टेक । करता वह निज राज्य पर, मानों अरि अभिषेक ||५|| अनुचित कार्यों को करे, तब हो नर का नाश । योग्यकर्म यदि छोड़दे, तो भी सत्यानाश || ६ | बिना विचारे प्राज्ञगण, करे न कुछ भी काम । करके पीछे सोचते, उनकी बुद्धि निकाम ||७|| नीतिमार्ग को त्याग जो करना चाहे कार्य । पाकर भी साहाय्य बहु, निष्फल रहे अनार्य ||६|| नरस्वभाव को देखकर, करो सदा उपकार 1 चूक करे से अन्यथा, होगा दुःख अपार ||६|| निन्दा से जो सर्वथा शून्य, करो वे काम । कारण निन्दित काम से, गौरव होता श्याम ||१०|| 2OZ
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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