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________________ कुरल काव्य ................ . ......---... - :.:: .. . .. .. प्रारकरार ! ....... --- Swaraurahmnaमामलwinitiam । मानवीय मारग की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ करल काल्ग है। अपने युग. के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्धा; .श्री गोविन्दरायजी, शास्त्री ने इस ग्रंथ, को तमिल भाषा लिपि से सस्कृत ग्राथा एव हिन्दी पद्य गद्य रूप रचना कर जनमानस का महान उपकार किया। उत्तर भारत में इस ग्रंथ की लोकग्नियता के प्रथम हेतु श्री पं. स्व गोविन्दरारजी शास्त्री ही हैं। इस ग्रंथ, का अनेंकों स्थानों संस्थाओं एवं व्यक्तियों द्वारा निरन्तर प्रकाशन साकार हुआ जो इस ग्रंथ की लोकोत्तर गौरव गरिमा का प्रतीक हैं। · .::: : कुरल काथ्य : तमिल भाषा का एक सर्वाधिक प्राचीन: लोकोत्तर ख्याति प्राप्त क्यज्य पथ है.। यूरोत की प्राय: सभी भाषाओं में इसके अनुवाद :प्रकाशित हो चुके हैं। तमिला भाषा भाषी इसे तमिल. वेद या पंचम वेद के रूप में स्वीकारते हैं। इस ग्रंथ का नामांकरण : कुरल वेणवा' नामक छंद विशेष के कारण हुआ!! इस ग्रंथ की विषय विवेचना शैली बड़ी ही सुन्दर और प्रभावोत्पादक है ! अनेक धर्मावलम्बी इस ग्रंथ को अपना धर्म ग्रंथ्र स्वीकारते हैं। शोध खोज़ के बाद यह ज्ञात हुआ कि इस , ग्रंथ के कर्ता श्री ऐलाचार्यजी हैं। जिनका अपर नाम कुन्दकन्याचार्य है। देवसेन आचार्य ने अपने दर्शनसार नामक ग्रंथ में कुन्दकुन्दाचार्य को पदमनंदि वक्रग्रीवाचार्य, लाचार्य, गूद्धपिच्छाचार्य नामों से भी उल्लिखित किया है। कुन्दकुन्दाचार्य वीर नि. सं. 492 के बाद भद्रबाह द्वितीय के शिष्य थे। इस ग्रंथ को तिरुवल्लवर कृत कहना कल्पित और संदिग्ध है। यह किसी दन्त कथा के आधार पर कह दिया गया होगा। कुरल काव्य की सारी रचना जैन मान्यताओं से परिपूर्ण है। श्रवणबेलगोल में हुई विद्वद् परिषद की मीटिंग दिनाक 18/12/2000 में यह निर्णय लिया गया कि भगवान महावीर स्वामी के 26 सौं वें जन्मोत्सव के पावन प्रसंग पर 25 प्रकार के लोकतंर ग्रंथों का प्रकाशन साकार किया जाए। विद्वत परिषद के इस निर्णा सं -----RATIAA.. P P ..A . Sit TA-Mitr-ra. . . .
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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