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________________ -जा कुबल काव्य परपरिच्छन्दः ४० शिक्षा 1-माप्त करने योग्य जो ज्ञान है, उसे सम्पूर्ण रूप से प्राप्त करना चाहिए और पात करने के पश्चात् तदनुसार व्यवहार करना चाहिए । 2-47-14 जाति की जीती जागती दो आँखों हैं, एक को अंक करते है और दूसर को अक्षर । 3- शिक्षित लोग ही आँख वाले कहलाये जा सकते हैं. अशिक्षितों के शिर में केवल दो गड्ढे होते हैं । ___-विद्वान जहाँ कहीं भी जाता है अपने साथ आनन्द ले जाता है, लेकिन जब वह विदा होता है तो पीछे दुःख छोड़ जाता है । 5-यद्यपि तुम्हें गुरु या शिक्षक के सामने उतना ही अपमानित और नीचा बनना पड़े जितना कि एक भिक्षक को धनवान के समक्ष बनना पड़ता है. फिर भी तुम विद्या सीखो । मनुष्यों में अधम वे ही लोग हैं जो विद्या सीखने से विमुख होते हैं । 6--स्रोत को तुम जितना ही खोदोगे उतना ही अधिक पानी निकलेगा । लीक इसी प्रकार तुम जितना ही अधिक सीखोगे उतनी ही तुम्हारी विद्या में वृद्धि होगी । 7 विद्वान के लिए सभी जगह उसका घर है और सभी जगह उसका स्वदेश है । फिर लोग मरने के दिन तक विद्या प्राप्त करते रहने में असावधानी क्यों करते हैं । 8-मनुष्य ने एक जन्म में जो विद्या प्राप्त कर ली है वह उसे समस्त आगामी जन्मों में भी सच्च और उन्नत बना देगी। 9-विहान् देखता है कि जो विद्या उसे आनन्द देती है वह संसार को भी आनन्दप्रद होती है और इसीलिए वह विद्या को और भी अधिक चाहता है। 10. विद्या मनुष्य के लिए त्रुटिहीन एक अविनाशी निधि है. उसके सामने दूसरी सम्पत्ति कुछ भी नहीं है । - - - - -- -- - - - .....-1880-... ... ......
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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