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________________ - कुशल काव्य परपरिच्छेदः 38 राजा 1-जिसके सेनः, लोकसख्या, धन, मंत्रिमण्डल. सहायकमित्र, और दुर्ग थे ; स्थेष्ट रूप में है, वह नृपमण्डल में सिंह है । 2--राजा ने ताहसदारता, बुद्धिमानी और कार्यशक्ति, इन बातो क कभी अभाव नहीं होना चाहिए । -जो पुरुष इस पृथ्वी पर शासन करने के लिए उत्पन्न हुने उन्हें चौक सी. जानकारी और निश्चयबुद्धि. ये तीनों खूबियाँ कभी नहीं छोड़ती। 4 राजा को धर्म करने में कभी न चूकना चाहिए और अधर्म को सदी दूर करना चाहिए । उसे स्पर्धापूर्वक अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहिए. परन्तु वीरता के नियमों के विरुद्ध दुराचार कभी न करना चाहिए । राजा को इस बात का ज्ञान रखना चाहिए कि अपने राज्य के साधनों की विस्फूर्ति और वृद्धि किस प्रकार की जाय और खजाने की पूर्ति किस प्रकार हो. धन की रक्षा किस रीति से की जावे और किस प्रकार समुचित रूप से उसका व्यय किया जावे । 6-यदि समस्त प्रक्षा की पहुँच राजा तक हो और राजा कभी कठोर बचन न बोलं ता उसका राज्य सबसे ऊपर रहेगा । 7.-जो राजा प्रीति के साथ दान दे सकता है और प्रेम के साथ शारान करता है उसका यश जगत भर में फैल जायेगा ।। -धन्य है वह राजा. जो निष्पक्ष होकर न्याय करता है और अपनी प्रजा की रक्षा करता है । वह मनुष्यों में देवता समझा जायेगा। -देखो. जिस राजा मे कानों को अप्रिय लगने वाले वचनों को सहन करने का गुग है, पृथ्वी निरन्तर उसकी छत्रछाया में रहेगी । 10- जो राजा उदार, दयालु तथा न्यायनिष्ठ है और जो अपनी प्रजा । को प्रेमपूर्वक संवा करता है वह राजाओ के मध्य में तिरवरूप है। 187
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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