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________________ जो कुभत्य काव्य परपरिच्छेदः 30 सत्यता 1-सचाई क्या है ? जिससे दूसरों को कुछ भी हानि न पहुंचे उस बात का बोलना ही सचाई है । 2-उस झूठ में भी सत्यता की विशेषता है जिसके परिणाम में नियम से भलाई ही होती हो । 3-जिस बात को तुम्हारा मन जानता है कि वह झूठ है, उसे कभी मत बोलो, क्योंकि झूठ बोलने से स्वयं तुम्हारी अन्तरात्मा ही तुम्हें जलायेगी। 4-देखो, जिस मनुष्य का मन असत्य से अपवित्र नहीं है, वह सबके हृदय पर शासन करेगा । 5-जिसका मन सत्यशीलता में निमग्न है वह पुरुष तपस्वी से भी महान् और दानी से भी श्रेष्ठ है । 6-मनुष्य के लिए इससे बढ़कर सुयश और कोई नहीं है कि लोगों में उसकी प्रसिद्धि हो कि वह झूठ बोलना जानता ही नहीं । ऐसा पुरुष अपने शरीर को कष्ट दिये बिना ही सब तरह की सिद्धियों को पा जाता है । 7-"असत्य माषण मत करो यदि मनुष्य इस आदेश का पालन कर सके तो उसे दूसरे धर्मों के पालन करने की आवश्यकता नहीं है। ___-शरीर को स्वच्छता का सम्बन्ध तो जल से है. परन्तु मन की पवित्रता सत्यभाषण से सिद्ध होती है । 9--योग्य पुरुष और सब प्रकार के प्रकाशों को प्रकाश ही नहीं मानते, केवल सत्य की ज्योति को ही वे सच्चा प्रकाश मानते हैं । 10-मैंने इस संसार में बहुत सी वस्तुएं देखी हैं. परन्तु उनमें सत्य से बढ़कर उप और कोई वस्तु नहीं है । --.-...-- .. - ..- 169)-----------------
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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