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________________ कुरल काव्य परिच्छेदः 29 तप सबविध हिंसा - त्याग कर, बनना करुणाधार । सब दुःखों को शान्ति से, सहना तप का सार || १|| तेजस्वी में शोभता, तप का तेज महान । आजहीन नर में वही, निष्फलता से म्लान || २ || ऋषियों की सेवार्थ भी, आवश्यक हैं लोग । ऐसा ही क्या सोचकर करें न तप कुछ लोग ||३|| मित्र-नुह रिपुदमन, यदि चाहो तो आर्य । दृढ़ प्रतिज्ञ वरवीर बन, करो तपस्या - कार्य ||४|| सर्वकामना सिद्धि में, रहता तप का योग । इसीलिए तप को सदा, करते सब उद्योग ॥५॥ 7 तप करते जो भक्ति से वे करते निज श्रेय 1 माया के फँस जाल में, अन्य करें अश्रेय ||६॥ तप में जैसा कष्ट हो, वैसी मन की शुद्धि । जैसे जैसी आग हो, वैसी कांचनशुद्धि || ७ || आत्म विजय जिसने किया, इच्छाओं को रोक | उस पुरुषोत्तम वीर को, पूजे सारा लोक ||८|| तपबल से जिसको मिले, शक्ति तथा वर - सिद्धि 1 मृत्यु विजय उसको सहज, ऐसी तप की ऋद्धि ||६|| दीनों की संख्या अधिक, इसमें कारण एक । तपधारी तो अल्प हैं, तप से हीन अनेक 11१०|| 162
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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