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________________ जा, कुल्ल काव्य राम परिच्छेदः २६५ दना 1 दया से लबालब भरा हुआ हृदय ही संसार में सबसे बड़ी सम्पत्ति है क्योंकि भौतिक विभूति तो नीच मनुष्यों के पास भी देखी जाती है । 2-ठीक पद्धति से सोच विचार कर हृदय में दया धारण करो और यदि तुम सब धर्मों से इस बारे में पूछकर देखोगे तो तुम्हें मालूम होगा कि दया ही एकमात्र मुक्ति का साधन है । 3-जिन लोगों का हृदय दया से ओत प्रोत है वे अंधकार पूर्ण नरक में प्रदेश न करेंगे। ___4-जो मनुष्य सब जीवों पर कृपा तथा दया दिखलाता है उसे उन पाप परिणामों को नहीं भोगना पड़ता जिन्हें देखकर ही आत्मा काँप उठती है। 5-क्लेश दयालु पुरुषों के लिए नहीं है, वातबलय–वेष्टित पृथ्वी इस बात की साक्षी है । 6-खेद है उस आदमी पर जिसने दयाधर्म को त्याग दिया है और पाप के फल को भोगकर भी उसे भूल गया है । 7-जिस प्रकार यह लोक धनहीन के लिए नहीं, उसी प्रकार परलोक निर्दयी मनुष्य के लिए नहीं है । 8-ऐहिक वैभव से शून्य, गरीब लोग तो किसी दिन समृद्धिशाली हो सकते हैं. परन्तु जो लोग दया और ममता से रहित हैं सचमुच ही कंगाल हैं और उनके सुदिम कभी नहीं फिरते । 9-विकार ग्रस्त मनुष्य के लिए सत्य को पा लेना जितना सहज है, कठोर हृदय वाले पुरुष के लिए नीति के काम करना भी उतना ही आसान है । 10- जब तुम दुर्बल को सताने के लिए उद्यत हो तो सोचो कि अपने से बलवान मनुष्य के आगे भय से जब तुम काँपोगे तब तुम्हे कैसा लगेगा ? 159
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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