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________________ ज, कुलत्य काव्य - परिच्छेद: 3 मुनि-महिमा विषयाशा जिनने तजी, बनकर तप के पात्र । उनकी महिमा तो बड़ी, गाते हैं सब शास्त्र ।।१।। ऋषियों की सामर्थ्य को, नाप सके नर कौन ? स्वर्ग गये जनवृन्द को, गिन सकता ज्यों कौन ।।२।। तुलना कर शिवलोक से, छोड़ा सब संसार । उस त्यागी के तेज से, जगमें ज्योति अपार ।।३।। स्वर्ग-खेत के बीज वे, संयम-अंकुश मार । करते गज सम इन्द्रियाँ, वश में पूर्ण प्रकार ॥४॥ शम-दम के भण्डार में, कैसी होती शक्ति । इच्छित हो तो देखलो, स्वर्गाधिप की भक्ति ।।५।। अनहोती होती करें, वे ही उच्च महान् । होती अनहोती करें, वे ही नीच अजान ।।६।। करतीं जिसकी इन्द्रियाँ, नीतिविहित उपभोग । रखता है वह सत्य ही, भू-शासन का योग ।।७।। धर्मग्रन्थ भी विश्व के, ऋषियों का जयघोष । करते हैं जिनके सदा, सत्य वचन निर्दोष ।।८।। त्याग शिखर जो है चढ़ा, तजकर सकल विकार । क्षण भर उसके क्रोध को, सहना कठिन अपार ।।६।। मुनि ही ब्राह्मण सत्य हैं, जिनका साधु स्वभाव । कारण उनके ही रहे, सब पर करुणा भाव ।।१०।। 114
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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