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________________ त कुशल काव्य पर परिच्छेदः १ ईश्वर-स्तुति 1-अ जिस प्रकार शब्द-लोक का आदि वर्ण है, ठीक उसी प्रकार अदि भगवान पुराण-पुरुषों में आदिपुरुष हैं । 2-यदि तम सर्वज्ञ परमेश्वर के श्रीचरणों की पूजा नहीं करते हो तो तुम्हारी सारी विद्वत्ता किस काम की ? 3-जो मनुष्य उस कमलगामी परमेश्वर के पवित्र चरणों की शरण लेता है. वह जगतमें दीर्घ जीवी होकर सुख-समृद्धि के साथ रहेगा । ___4-धन्य है वह मनुष्य, जो आदिपुरुष के पादारविन्द में स्त रहता है। जो न किसी से राग करता है और न घृणा, उसे कभी कोई र नहीं होता। 5-देखो. जो मनुष्य प्रभु के गुणों का उत्साहपूर्वक गान करते हैं. उन्हें अपने भले-बुरे कर्मों का दुःखद फल नहीं भोगना पड़ता है । 6-जो लोग उस परम जितेन्द्रिय पुरुष के दिखाये धर्ममार्ग का अनुसरण करते हैं, चिरजीवी अर्थात अजर अमर बनेंगे ।' - 7–केवल वे ही लोग दुःखों से बच सकते हैं, जो उस अद्वितीय पुरुष की शरण में आते हैं । 8- धन वैभव और इन्द्रिय-सुख के तूफानी समुद्र को वे ही पार कर सकते हैं, जो उस धर्मसिन्धु मुनीश्वर के चरणों में लीन रहते हैं । g-जो मनुष्य अष्ट गुणों से मण्डित परब्रह्म के आगे शिर नहीं झुकाता. वह उस इन्द्रिय के समान है, जिसमें अपने गुणों को ग्रहण करने की शक्ति नहीं है । ___10--जन्ममरण के समुद्र को वे ही पार कर सकते हैं, जो प्रभु के चरणों की शरण में आ जाते हैं । दूसरे लोग उसे तर ही नहीं सकते। 111
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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