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कषायजन्य-भावना
अर्थ - धन को प्राप्त करने की इच्छा से हामी मनुष्य लिखता है, गाला है, * जोतता है, सींचता है, रक्षा करता है, काटता है, खोदता है अथवा दौड़ता *
है। फिर भी वह धनवान नहीं बन पाता है। भावार्थ - मनुष्य की इच्छाएँ अनन्त हैं। आचार्य भगवन्त श्री गुणभद्र लिखते
आशागतः प्रतिप्राणी, यस्मिन् विश्वमणुपमम् |
कस्य किं कियदायाति, वृथा वो विषयैषिता। | अर्थात् -प्रत्येक मनुष्य का आशा का गला दुष्पूर है। उसमें विश्व के पदार्थ अणु के समान है। किसे क्या दिया जाये ? इसलिए आशा करना व्यर्थ ही |
लोभी मनुष्य धन प्राप्त करने की इच्छा से विविध प्रकार के कार्य करता है, फिर भी धनवान नहीं बन पाता।
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लोभेन रात्रौ न सुखेन शेत। लोभेन लोकः समये न भुइ.क्ते ।। लोभेन काले न करोति धर्म।
लोभेन पात्रे न ददाति दानम् ||३५|| अर्थ - लोभी मनुष्य लोभ के कारण रात्रि में सुख से सोता नहीं है। समय पर ठीक से खाता नहीं है। लोभ के कारण समय पर धर्म नहीं करता है। * | लोभ के कारण पात्र को दान नहीं देता है।
भावार्थ - लोभ मनुष्य को प्राप्त वस्तुओं में संतुष्ट नहीं होने देता। कुछ और 3 पाने की चाह में लोभी समय पर न ठीक से खा पाता है, न रात्रि में ठीक * से सो पाता है। कहीं धर्मकार्य में समय व्यतीत करके कुछ पाने से वंचित ।
न हो जाऊं, इस भय से वह धार्मिक कार्यों को नहीं करता है। पात्रदान में| * कहीं मेरे धन का व्यय न हो जाये. इस भय से लोभी पात्रदान भी नहीं है 张张杰米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米