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कषायजय भावना उसे वह लघु बना देती है। कपटी पुरुष में विद्यमान धीरता, सच्चरित्रता, *
शीलसंपन्नता, विनय आदि गुण भी उसे प्रसिद्धि के शिखर पर बैठने नहीं * देते हैं। मायावी पुरुष चाहे धनवान हो या बुद्धिमान, चाहे वयोवृद्ध हो या
अन्य किसी भी विशेषता से युक्त हो मायाचार सम्पूर्ण पात्रताओं को नष्ट कर देता है।
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आराध्यमानस्य च देववृन्दं। प्रपूज्यमानस्य हि साधुवृन्दम्।। निषव्यमानस्य तु राजलोकं।
न मायिनः सिद्धयति कार्यजातम् ||२५|| Pe अर्थ - देवताओं की पूजा, साधुओं की सेवा और राजाओं की सेवा करने |
पर भी मायाचारी पुरुष का कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है। भावार्थ - मनुष्य अपनी इष्टसिद्धि के लिए देवताओं की पूजा, गुरुओं की सेवा और राजाओं की सेवा करता है। इन सब कार्यों को करते हुए भी | मायाचारी पुरुष अपने इष्टकार्यों की सिद्धि नहीं कर पाता है।
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न तस्य माता न पिता न मित्र। न बान्धवा न स्वजनाः न पुत्राः।। चाटूनि नुर्नाट्यततोऽपि नित्यं।
ने मायया विश्वसिति हि कोऽपि ||२६|| * अर्थ - मायाचारी व्यक्ति की न कोई माता हैं, न पिता हैं, न बन्धु हैं, न के | सम्बन्धि हैं, न पुत्र है। चापलूसी प्रदर्शित करने वाले पर कोई भी विश्वास * नहीं करता है। * भावार्थ - मायाचारी मनुष्य चाटुकारिता के माध्यम से अपने कार्यों की
| सिद्धि करना चाहता है। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कुछ भी कर | 然来来来来来来来来来老的柴米米米米米米米米米米米
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