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| कषायजय-भावना चित्त वाला मानी मोहित होकर किसी से बात तक नहीं करता है। as भावार्थ - इस लोक में मानी पुरुष की प्रवृत्ति कैसी होती है ? उसका वर्णन
किया गया है। संसार में तनाव से बचने लिए मित्रों के सहयोग की * आवश्यकता होती है। मैत्री को कायम रखने के लिए प्रेम से बातें करना,
भोजन करना, भोजन कराना आदि अनेक उपाय होते हैं। ये कार्य सामाजिक | सौहार्द्र को निर्मित करते हैं। अहंकारी मान के कारण न किसी के यहाँ * भोजन करता है, न किसी को अपने यहाँ भोजन कराता है। अहंकार से
ग्रस्त होकर वह किसी से ठीक-से बात तक नहीं करता है।
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विद्यां न कीर्तियशसीन तपो न मैत्रीं । नो सम्पदं न विभुतां न च मन्त्रतन्त्रम् ।। लोकद्वयेऽपि सुखमन्यदपि प्रशस्त।
स्वं वाञ्छितं हि लभते न कदापि मानी ||१५|| | अर्थ - मानी पुरुष दोनों ही लोकों में विद्या, कीर्ति, यश, तप. मैत्री, सम्पदा, प्रभुता, मंत्र, तंत्र तथा अन्य सुखों को भी प्राप्त नहीं करता है। भावार्थ - इस सृष्टि का एक नियम है कि कुछ भी प्राप्त करने के लिए नम्रता को अंगीकार (स्वीकार) करना पड़ता है। श्रेष्ठत्व के भ्रम में भ्रमित | हुआ अहंकारी मनुष्य में सबकुछ जानता हूँ ऐसी भ्रमभरी मान्यता के | | कारण कुछ सीख नहीं पाता। यही कारण है कि अहंकारी व्यक्ति ज्ञान को । प्राप्त नहीं कर सकता। मानी कीर्ति, यश, तप, मैत्री. सम्पदा, प्रभुता. मंत्र. * तंत्र तथा अन्य सुखों को भी प्राप्त नहीं कर सकता है।
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दुरन्त-संसार-समुद्र-तारकं| प्रपन्नसौख्यामलसिद्धिसाधकम् ।। सहेतुकं यद्यपि भव्यते बुधैः।
श्रुणोति मानी न तथापि सद्वचः ||१६|| 张法来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来