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-कतिगेयाणुष्पेक्खा
[ तत्वार्थसूत्र १-२९]
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सर्वद्रव्यपर्याय सर्वमाहारमश्नाति सर्वस्योभयरूपत्वे सर्वशः 'प्रोणकर्मामी सर्वाषयवसपूर्ण सर्वानवपरित्यक्तं सर्वातिशयसंपूर्ण सर्वेऽपि पुद्गलाः खल्वेकेन
[अष्टसहन्यामुढतोऽयं श्लोकः पृ. ९२] [शुभचन्द्र, शानार्णच ४२-४१] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४०-२६]
[शुभचन्द्र, शानार्णव ३५-२] [सर्वार्थसिद्धौ (२-१.) उतैका
गाथा तत्सदृशी] [अष्टाध्यायी ६,१, १.१]
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सर्वेण सह वीर्घः स बरे संवरं सारं सम्बट्टो ति सुदिट्ठी सध्वम्हि लोयखेत्ते ससमयमावलिअवर सहभाविनो गुणाः संघस्स कारणेणं संजमविरईणं को मेदो
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[ त्रिलोकसार ५४६ ] [कुन्दकुन्द, द्वादशानुप्रेक्षा २६] [नेमिचन्द, गोम्मटसार जी० ५७४*1] [आलापपद्धति, प्रथम गुच्छक पृ. १६.] [शानसूर्योदयनाटकेऽप्युद्धतेयं गाथा पत्र २६] [षट्रखण्डागम ] वर्गणानण्ड [पृ. १४;
चारित्रसार पृ. २.] अष्टसहस्री [भाशमीमांसा ७२] अष्टसइसी [आप्तमीमांसा २९] [वसनन्दिश्रावकाचार ३४.] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २५-३९] तरक्षार्थसूत्र [वृत्ति ९-६] [चारित्रसार पृ.३]
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संज्ञासंख्याविशेषाच संतानः समुदायश्च संथारसोहणेहि य संयतासंयतेष्वेतत् संयमिनी योग्य संवेगो निर्वेदो निन्दा संसरत्यन्त्र संसारे संसारम्मि वि विहिणा सालोकानां त्रिलोकाना सावजकरणजोग साहारणमाहारो साहियसहस्समेकं वारं सिग्छ लाहालाहो सिम्हाणुवणगैध सिद्धसरूर्व सायदि सिद्ध शुद्ध जिनं नत्वा सिना सिविं मम सिद्धिरनेकान्तात सिद्धेः सौर्य समारोद्यमियं सिद्धो हं सुदो ई सीदी सही चालं सूकुलजन्म विभूतिरनेकधा
[रनकरण्डश्रावकाचार १] वसुनन्दि, अत्याचार [ मूलाचार ९-३४] [गोम्मटसार जी, कां १९२] गोम्मटसार [जी. का. ९५] [वक्षनन्दि, श्रावकाचार ३.५] [सुनन्दि, श्रावकाचार २९३ ] [ वसुनन्दि, श्रावकाचार २७८ ]
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[चतुर्विंशतिस्तव ८] पूज्यपाद, जैनेन्द [व्याकरण १, १, १] [शुभचन्द्र, ज्ञानाणेव ३८-५८]. [तत्त्वसार १- ] गोम्मटसार [ जी. को. १२३]
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