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________________ ३२९ गा०२८] -- १. अद्भुवाणुधेक्खा - ण य भुंजदि वेलाएं चिंतावत्थो ण सुर्वदि रयणीए । सो दासत्तं कुधदि विमोहिंदो उचिट-तरुणी ॥१५॥ जो वडमाण-लच्छि अणवरयं देदि धम्म-कज्जेसु । सो पंडिएंहिँ थुवदि तस्स वि सहला हवे लच्छी ॥ १९ ॥ एवं जो जाणित्ता विहलिय-लोयाण धम्म-जुत्ताणं । हिरवेक्खो तं देदि हु तस्स हवे जीवियं सहलं ॥ २० ॥ जल-बुब्बुर्य-सारिच्छं धण-जोवण-जीवियं पि पेच्छंती । मण्णंति तो वि णिचं अइ-वलिओ मोह-माहप्पो ॥ २१ ॥ चइऊण महामोहं विसए मुणिऊण भंगुरे सके। णिधिसयं कुणह मणं जेण सुहं उत्तम लहह ॥ २२ ॥" २. असरणाणुवेक्खा तत्थ भवे किं सरणं जत्थ सुरिंदाण दीसंदे विलओ। हरि-हर-बंभादीया कालेण य कवलिया जत्थ ॥ २३ ॥ सीहस्स कमे पडिदं सारंगं जह ण रक्खदे को वि। तह मिचुणा य गहिदं जीवं पि ण रक्खदे को वि ॥ २४ ॥ जा देवो वि य रक्खेंदि मंतो तंतो य खेत्तपालो य । मियमाणं पि मणुस्सं तो मणुया अक्खया होति ॥ २५ ॥ अइ-बलिओ चि रउहो मरण-विहीणो ण दीसैदे को वि। रक्खितो वि सया रक्ख-पयारेहिँ विविहेहि ॥ २६ ॥ एवं पेच्छतो वि हु गह-भूय-पिसाय-जोइणी-जक्खं । सरणं मण्णई मूढो सुगाढ-मिच्छत्त-भावादो ॥ २७ ॥ आउ-क्खएण मरणं आउं दाउंण सफदे को वि । तम्हा देविदो वि य मरणाउ ण रक्खदे को कि ॥ २८ ॥ --- - - बबेलाइ चिंता गमछे ण। २ब सुयदि, लमग सुअदि। ३ घ तहह । ४ कुछ प्रतियों में यहाँ युग्मम् या युगलम् पारद मिलता है। ५ लमस देहि । ६ लग पंडियेहि। ७ च हवह । ८ लमसग देहि। ९ बलस बुन्वय, म बुखुध, गन्चु य । १० लमसग जुध्यण । ११ व विच्छंता। रेलमसग सुणिजण। १३म मनित्यानुप्रेक्षा ॥1॥ १५ व गाथाके आरंभमें 'भसरणाणुवेषग्या'। १५ लमसग दीसये । १६ लमग गहिर्म । १ लमसग रक्खह । १८च खिन । १९ लमसग दीसए । २.घ पिच्छतो। २. स भूइपिसाह। २२ ग मसह ।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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