SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंगलाचरण बारह अनुप्रेक्षाअंकि नाभ १ अनित्यानुप्रेक्षा पर्याय दृष्टिसे प्रत्येक वस्तु अनित्य है संसारके सब विषय क्षणभंगुर है । बन्धुबान्धवका सम्बन्ध पथिकजनोंकी तर क्षणिक है । लक्ष्मीकी चंचलताका चित्रण धर्मकार्यो में लक्ष्मीका उपयोग करने वालोंकी ही लक्ष्मी सार्थक है । २ अशरणानुप्रेक्षा संसार में कोई भी शरण नहीं है । जो भूतप्रेतोंको रक्षक मानता है वह अशानी है । सम्यग्दर्शनावि ही जीवके शरण हैं । ३ संसारानुप्रेक्षा संसारका स्वरूप नरकगतिके दुःखोंका वर्णन विर्यगतिके मनुष्यगतिके देवगतिके 13 11 11 33 "" एक में अट्ठारहाते पांच परावर्तनोंका स्वरूप "" संस्कृत टीकासहित कार्ति के या नुप्रेक्षा की विषय सूची ४ एकत्वानुप्रेक्षा जीवके अकेलेपनका कथन ५ अन्यत्वानुप्रेक्षा जीवसे शरीरादि भिन्न हैं। पृष्ठ १ ६ अशुचित्वानुप्रेक्षा शरीर अशुचिताका कथन २ ७ आस्त्रवानुप्रेक्षा योगी है । ३-११ । ३-४ ५ ६ ६-९ શ્ १२-१५ १२६ १३ १५ १६-३७ १६ १६-१९ १९-२० २१-२६ २६-२७ २९-३० ३१--३७ ३८-३९ 23 ४० ४० शुभाावका कारण मन्द कषाय अभावका कारण तीव्र कषाय मन्दकषायके चिन्ह arasures चिन्ह ८ संघरानुप्रेक्षा संवरके नाम पृष्ठ ४१-४३ " ४३-४६ संबर के हेतु गुप्ति, समिति, धर्म और अनुप्रेक्षाका ४३ ४४ 11 ४६-४९ ४६ स्वरूप परीषद्दजय उत्कृष्ट चारित्रका स्वलग ९ निर्जरानुप्रेक्षा निर्जराका कारण निर्जराका स्वरूप निर्जराके भेद उत्तरोत्तर असंख्यात गुणी निर्जरावाले सम्यग्दृष्टी आणि दस स्थान 27 ४५ 15 2010 = ४७ ४८ ४९-५४ ४९ ५० "" ५१ ५२-५४ ५५-२०४ ५५-५६ अधिक निर्जराके कारण १० लोकानुप्रेक्षा लोकाकाशकां स्वरूप ५७ लोकाकाशका पूर्वपश्चिम विस्तार दक्षिण-उत्तर विस्तार अधोलोक मध्यलोक और ऊर्ध्वलोकका विभाग," ५८ 37
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy