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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ * सम्मामिच्छत्तस्स जहएणाणुभागुदीरणा कस्स । $ १२९. सुगमं । * सम्मत्ताहिमुहचरिमसमयसम्मामिच्छाइहिस्स सव्वविसुद्धस्स । 5 १३०. एत्थ संजमाहिमुहचरिमसमयसम्मामिच्छाइद्विस्से ति किण्ण वुच्चदे ? ण, सम्मामिच्छाइद्विस्स संजमगुणपडिवत्तीए अचंताभावेण पडिसिद्धत्तादो। तम्हा सम्मत्ताहिमुहचरिमसमयसम्मामिच्छाइडिस्स तप्पाओग्गसव्वुक्कस्सविसोहीए विसुद्धस्स पयदजहण्णसामित्तमिदि घेत्तव्वं ।। * अपंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागउदीरणा कस्स ? १३१. सुगमं । * संजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइहिस्स सव्वविसुद्धस्स । $ १३२. एदस्स सुत्तस्स मिच्छत्तजहण्णसामित्तसुत्तस्सेव अत्थपरूवणा कायव्वा, विसेसाभावादो। * अपचक्खाणकसायस्स जहएणाणुभागउदीरणा कस्स ? $ १३३. सुगमं । * सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? ६ १२९. यह सूत्र सुगम है। * सम्यक्त्वके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती है। १३०. शंका–यहाँपर संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती है ऐसा क्यों नहीं कहते ? समाधान--नहीं, क्योंकि सम्यग्मिध्यादृष्टिके संयमगुणकी प्राप्ति अत्यन्ताभावरूपसे निषिद्ध है। इसलिए सम्यक्त्वके अभिमुख हुए तत्प्रायोग्य सर्वोत्कृष्ट विशुद्धिसे विशुद्ध अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके प्रकृत जघन्य स्वामित्व होता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। * अनन्तानुबन्धियोंकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $ १३१. यह सूत्र सुगम है। * संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके होती है । $ १३२: मिथ्यात्वके जघन्य स्वामित्वविषयक सूत्रके समान इस सूत्रके अर्थका कथन करना चाहिए, क्योंकि इन दोनोंके कथनमें कोई विशेषता नहीं है। * अप्रत्याख्यानावरण कषायकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? ६ १३३. यह सूत्र सुगम है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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