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________________ ३५४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ ___ ४७६. कुदो ? अंतरकरणकारयचरिमसमपम्मि अधापवत्तसंकमेण संकमंताणमसंखेजाणं समयपबद्धणमेत्थ सामित्तविसईकयाणमुवलंभादो । एत्थ गुणगारो असंखेजाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । * उकस्सपवेसुदीरणा असंखेजगुणा। ४७७. किं कारणं ? उक्कस्ससंकमो णाम अणियट्टिकरणम्मि अंतरं करेमाणो से काले लोभस्स असंकामगो होहिदि त्ति एत्थुद्देसे अधापवत्तसंकमेण जादो । उदीरणा पुण सव्वं मोहणीयदव्वं पडिच्छिय सुहुमसांपराइयखवगस्स पढमद्विदीए समयाहियावलियमेत्तसेसाए उदोरिजमाणाए असंखेजसमयपबद्धे' घेत्तणुकस्सा जादा, तेणासंखेजगुणा भणिदा । अधापवत्तभागहारं पेक्खियूणुदीरणाहेदुभूदोकडणाभागहारस्सासंखेजगुणहीणत्तादो। * उक्कस्सपदेसुदयो असंखेजगुणो। $ ४७८. कुदो ? सुहुमसांपराइयखवगचरिमगुणसेढिसीसयसम्बदव्वस्स गहणादो। एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिमागमेत्तो। * उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ४७६. क्योंकि अन्तरकरण करनेवालेके अन्तिम समयमें अधःप्रवृत्तसंक्रम द्वारा संक्रमको प्राप्त हुए असंख्यात समयप्रबद्ध स्वामित्वके विषयरूपसे यहाँ पर उपलब्ध होते हैं । यहाँ पर गुणकार पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । * उससे उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है । $ ४७७. क्योंकि उत्कृष्ट संक्रम अनिवृत्तिकरणमें अन्तरको करता हुआ जब तदनन्तर समयमें लोभका असंक्रामक होगा ऐसे स्थलपर अधःप्रवृत्त संक्रमके द्वारा हुआ है। परन्तु उदीरणा तो मोहनीयके समस्त द्रव्यको लोभसंज्वलनमें संक्रमित कर सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपककी प्रथम स्थितिमें समयाधिक एक आवलिमात्र शेष रहने पर उदीर्यमाण असंख्यात समयप्रबद्धको ग्रहण कर उत्कृष्ट हुई है इसलिए उसे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमसे असंख्यातगुणी कही है, क्योंकि अधःप्रवृत्त भागहारको देखते हुए उदीरणाका हेतुभूत अपकर्षण भागहार असंख्यातगुणा हीन है। * उससे उत्कृष्ट प्रदेश उदय असंख्यातगुणा है । ३ ४७८. क्योंकि सूक्ष्मसाम्परायिक झपकके अन्तिम गुणश्रेणिशीर्षके समस्त द्रव्यको प्रकृतमें ग्रहण किया है । यहाँ पर गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भागप्रमाण है। * उससे उत्कृष्ट प्रदेश सत्कर्म विशेष अधिक है। १. आ०--ता०प्रत्योः संखेज्जसमयपबद्ध इति पाठः।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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