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________________ ३५० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ * उक्कस्सपदेसर्सकमो असंखेज्जगुणो । णेदमसिद्धं, $ ४६०. किं कारणं ? किंचूणसगसगुक्कस्सदव्वपमाणत्तादो । गुणिदक संसियस सव्वसंकमेण पयदुक्कस्ससामित्तावलंबणेण सिद्धत्तादो। एत्थ गुणगारो असंखेजाणि पलिदोवम पढमवग्गमूलाणि । * उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ६ ४६१. कुदो ? गुणिदकम्मंसियलक्खणेणुक्कस्ससंचयं काढूणावट्ठिदचरिमसमयइम्मि पयदुकरससामित्तविहाणादो । केत्तियमेत्तो विसेसो १ णिरयादो उच्चट्टिय मणुसगदिमागतूण सव्वलहुं सव्वसंकमेण परिणममाणस्स अंतराले पर्याडिगोवुच्छसरूवेण गुणसेढिणिजए गुणसंकमेण च णट्ठदव्यमेत्तो | * सम्मतस्स उक्कस्सपदेससंकमो थोवो । $ ४६२. किं कारणं ? अधापवत्तसंक्रमेण पडिलद्ध कस्स भावत्तादो । * उक्कस्सपदेसुदीरणा असंखेज्जगुणा । ९ ४६३. कुदो १ दंसणमोहक्खवयस्स समयाहियावलियमेतट्ठिदिसंतकम्मे सेसे शंका -- गुणकार क्या है ? समाधान -- पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है । * उससे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है । $ ४६०. क्योंकि गुणितकर्माशिक जीवके सर्वसंक्रमके द्वारा प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वका अवलम्बन लेनेसे यह सिद्ध है । यहाँ पर गुणकार पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूल प्रमाण है। * उससे उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । $ ४६१. क्योंकि गुणित कर्माशिक लक्षण द्वारा उत्कृष्ट संचय करके अवस्थित हुए अन्तिम समयवर्ती नारकीके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वका विधान किया है। शंका - विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान — नरक से निकल कर और मनुष्यगति में आकर अतिशीघ्र सर्वसंक्रम द्वारा परिणमन करने वाले जीवके अन्तराल में प्रकृति गोपुच्छरूप से तथा गुणश्रेणिनिर्जरा और गुणसंक्रम द्वारा जितना द्रव्य नष्ट होता है उतना है । * सम्यक्त्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्तोक है । ४६२. क्योंकि अधःप्रवृत्त संक्रम द्वारा इसने उत्कृष्टपना प्राप्त किया है । $ उससे उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है । $ ४६३. क्योंकि दर्शनमोह क्षपक के समयाधिक आवलिमात्र स्थितिसत्कर्मके शेष रहनेपर
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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