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________________ ३३८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ ४१२. कुदो ? पुरिसवेदचरिमद्विदिबंधस्स अट्ठवस्सपमाणस्स आबाहाए विणा गहणादो। * जट्ठिदिसंकमो विसेसाहियो । 5 ४१३. कुदो १ समयूणदोआवलियाहिं परिहीणजहण्णाबाहाए एत्थ पवेसदसणादो। * जहिदिसतकम्मं विसेसाहियं । ६४१४. केत्तियमेत्तो विसेसो ? एगहिदिमेत्तो। किं कारणं ? पुन्विल्लसामित्तविसयादो हेडिमाणंतरसमए द्विदिसंतकम्मस्स जहण्णसामित्तदंसणादो। * जहिदिबंधो विसेसाहिओ। $ ४१५. केत्तियमेत्तो विसेसो ? दुसमयूणदोआवलियमेत्तो । * छण्णोकसायाणं जहण्णगो डिदिसंकमो संतमम्मं च थोवं । $ ४१६. कुदो ? खवगस्स चरिमट्ठिदिखंडयविसये पडिलद्धजहण्णभावत्तादो । * जहण्णगो डिदिपंधो असंखेजगुणो । $४१७. किं कारणं १ एइंदियजहण्णद्विदिबंधस्स पलिदोवमासंखेजभागपरिहीणसागरोवमवेसत्तभागपमाणस्स गहणादो । ४१२. क्योंकि पुरुषवेदके आठ वर्षप्रमाण अन्तिम स्थितिबन्धका आबाधाके बिना यहाँ ग्रहण किया है * उससे यस्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। $ ४१३. क्योंकि एक समय कम दो आवलि हीन जघन्य आबाधाका इसमें प्रवेश देखा जाता है। * उससे यत्स्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है। $ ४१४. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-एक स्थितिमात्र है, क्योंकि यस्थितिसंक्रमके स्वामीसे अनन्तरपूर्व समयमें यत्स्थितिसत्कर्मका जघन्य स्वामीपना देखा जाता है । * उससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। 5 ४१५. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान—वह दो समय कम दो आवलिप्रमाण है। * छह नोकषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम और सत्कर्म स्तोक हैं। $ ४१६. क्योंकि झपकके जघन्य स्थितिकाण्डकके समय इनका जघन्यपना प्राप्त होता है। * उससे जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । ६४१७. क्योंकि एकेन्द्रिय जीवके पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग कम ऐसा सागरोपमका दो बटे सात भागप्रमाण जघन्य स्थितिबन्धका यहाँ पर ग्रहण किया है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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