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________________ बंधादिपंचपदप्पाबहुअणिदेसो गा० ६२ ] अवत्थाविसेसो सूचिदो । दोण्हमेदेसिं देसामासयभावेणावट्ठिदावत्तव्य सण्णिदाणमवत्थंतराणमेत्थेव संगहो दट्ठव्वो । पुणो 'अणुसमयमुदीरेंतो' इच्चेदेण गाहापच्छद्वेण भुजगारविसयाणं समुक्कित्तणादिअणियोगद्दाराणं देसामासयभावेण कालाणियोगो परूविदो । तदो एवंविहो भुजगारो एत्थ विहासियव्वो ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो । सो वुण भुजगारो पयडिभुजगारादिभेदेण चउव्विहो होदि त्ति जाणावणमाह ३१९ * पयडिभुजगारो ट्ठिदिभुजगारो अणुभागभुजगारो पदेसभुजगारो । $ ३४३. एवमेसो पयडि-ट्ठिदि- अणुभाग-पदेसुदीरणाविसयो चउव्विहो भुजगारो एत्थ विहासिव्यो त्ति भणिदं होड़ । ण केवलं भुजगारो चैव एत्थ विहासियन्वो, किंतु गारविलक्खो पदणिक्खेवो, पदणिक्खेवविसेसलक्खणा वड्डिउदीरणा च विहासियव्वा, तेसिं तत्थेवं तन्भावादो त्ति । एदं च सव्वं पयडि - डिदि - अणुभाग-पदेसुदीरणासु जावसरमेव विहासियं त्ति दाणि तप्पवंचो कीरदे | * एवं मग्गणाए कदाए समत्ता गाहा भवदि । $ ३४४. सुगममेदं पयदत्थोवसंहारवकं । एवं पयदत्थमुवसंहरिय संपहि चउत्थीए गाहा अत्थविहासमुवरिमसुत्तपबंधमोदारइस्सामो प्रकार इस द्वारा भी अल्पतर संज्ञावाली अवस्थाविशेष सूचित की गई है। इन दोनोंके देशामर्श कभाव से अवस्थित और वक्तव्य संज्ञावाले अवस्थाविशेषोंका यहीं पर संग्रह कर लेना चाहिए । पुनः 'अणुसमयमुदीरेंतो' इस प्रकार उक्त गाथाके इस उत्तरार्धद्वारा भुजगारविषयक समुत्कीर्तनादि अनुयोगद्वारोंके देशामर्पकरूपसे काल अनुयोगद्वारका कथन किया है । इसलिए इस प्रकार भुजगारका यहाँ पर व्याख्यान करना चाहिए यह इस सूत्रका भावार्थ है । परन्तु वह भुजगार प्रकृति भुजगार आदिके भेदसे चार प्रकारका है यह ज्ञान कराने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं— * वह भुजगार चार प्रकारका है - प्रकृतिभुजगार, स्थितिभुजगार, अनुभागभुजगार और प्रदेशभुजगार | $ ३४३. इस प्रकार प्रकृतिउदीरणा, स्थितिउदीरणा, अनुभागउदीरणा और प्रदेश उदीरणाको विषय करनेवाले चार प्रकारके उस भुजगारका यहाँ व्याख्यान करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यहाँ पर केवल भुजगारका ही व्याख्यान नहीं करना चाहिए, किन्तु भुजगारविशेष है लक्षण जिसका ऐसे पदनिक्षपका तथा पढ़निक्षेपविशेष है लक्षण जिसका ऐसी वृद्धि उदीर-. णाका व्याख्यान करना चाहिए, क्योंकि उनका उसीमें अर्थात् भुजगारउदीरणा में ही अन्तर्भा होता है । परन्तु इस सबका प्रकृति उदीरणा, स्थिति उदीरणा, अनुभाग उदीरणा और प्रदेशउदीरणाके समय यथावसर ही व्याख्यान कर आये हैं, इसलिए इस समय उनका विस्तार नहीं करते हैं । * इस प्रकार भुजगारका अनुमार्गण करने पर तीसरी गाथाका अर्थ समाप्त होता है । $ ३४४. प्रकृत अर्थका उपसंहार करनेवाला यह वाक्य सुगम है । इस प्रकार प्रकृत
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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