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________________ ३१२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे 1 [वेदगो ७ __$३२५. कालाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडीणंसव्वपदा सम्बद्धा । णवरिमिच्छ०--गवंस०अवत्त० सम्म०--सम्मामि०-इत्थिवे०-- पुरिसवे० अवढि०--अवत्त० जह०एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । सम्मामि० भुज०--अप्प० जह० एगस०,उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । एवं तिरिक्खा० । $ ३२६. सव्वणिरय-पंचिंदियतिरिक्खतिय-देवा जाव णवगेवजा त्ति सम्मामिच्छ. ओघं । सेसपयडी० भुज-अप्प० सव्वद्धा । सेसपदाणं जह० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। पंचिं०तिरि०अपज. सव्वपय० भुज०--अप्प० सव्वद्धा। सेसपदा० जह० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। एवं मणुसअपज्ज० । णवरि भुज०--अप्प० जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। मणुसा० पंचिंदियतिरिक्खभंगो । णवरि मिच्छ०--सम्म०-सम्मामि०-तिण्णिवेद० अवत्त० जह० एयस०, ६ ३२५. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके सब पदोंके प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अवस्थित और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यश्चोंमें जानना चाहिए। विशेषार्थ-मिथ्यात्व और नपुंसकवेदकी अवक्तव्य उदीरणा क्रमसे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव ही करते हैं, इसलिये इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण बन जानेसे वह उक्त प्रमाण कहा है । इसी प्रकार सम्यक्त्व आदि चार प्रकृतियोंके अवस्थित और अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीवोंके जघन्य और उत्कृष्ट कालके विषयमें विचार कर उसे घटित कर लेना चाहिए । सम्यग्मिथ्यात्व गुण यह सान्तर मागंणा है, इसलिए उसके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको ध्यानमें रख कर यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । शेष कथन स्पष्ट ही है। ३२६. सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिक और सामान्य देवोंसे लेकर नौ अवेयक सकके देवोंमें सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पद प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पद उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरककोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। मनुष्योंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और तीन वेदोंके
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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