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[ वेदगो ७
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
देय अवतन्त्रगाय । सम्म० - इत्थि वे ० - पुरिसवे० भुज० - अप्प० णिय० अत्थि, सेसपदा भणिज्जा | सम्मामि० सव्वपदा भयणिजा । सोलसक० - छण्णोक० सव्वपदा णियमा अत्थि । एवं तिरिक्खोघं ।
$ ३१९. सव्वणिरय - पंचिदियतिरिक्खतिय- मणुसतिय देवा जाव णवगेवजा ति सम्मामि० ओघं । सेसपयडीणं भुज० - अप्प० णियमा अत्थि । सेसपदा भयणिजा । पंचिदियतिरिक्खअपज ० - अणुद्दिसादि सव्वट्टा त्ति सव्वपयडी० भुज० - अप्प० निय० अन्थि, सेसपदा भणिजा । मणुसअपज्ज० सव्वपयडीणं सव्वपदा भयणिजा । एवं जाव० ।
$ ३२०. भागाभागाणुगमेण दुविहो णिदेसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - णव स० भुजगार० दुभागो देसूणो । अप्पद० दुभागो सादिरेओ । अवट्ठि ० असंखे ० भागो । अवत्त० अनंतभागो । एवं सम्म० - सम्मामि ० - सोलसक० - अट्ठणोक० । वरि अवत्त० असंखे ० भागो । एवं तिरिक्खा० ।
$ ३२१. सव्वणिरय - सव्यपंचिदियतिरिक्ख - मणुसंअपज० – देवा जाव अवराजिदा ति सव्वपयडी० भुज० - अप्पद० ओघं । सेसपदा० असंखे० भागो । मणुसा०
नियमसे हैं, कदाचित् ये नाना जीव हैं और एक अवक्तव्य प्रद ेश उदीरक जीव है, कदाचित् ये नाना जीव हैं और नाना अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव हैं । सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके भुजगार और अल्पतरप्रदेश उदीरक जीव नियमसे हैं, शेष पद भजनीय हैं । सम्यग्मिथ्यात्वके सब पद भजनीय हैं | सोलह कषाय और छह नोकषायोंके सब पद नियमसे हैं । इसी प्रकार सामान्य तिर्यों में जानना चाहिए ।
$ ३१९. सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, मनुष्यत्रिक और सामान्य द ेवोंसे लेकर नौ मैवेयकतकके द ेवोंमें सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघ के समान है । शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरक जीव नियमसे हैं, शेष पद भजनीय हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के द वोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर प्रद ेश उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंके सब पद भजनीय हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए |
$ ३२०. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघ मिथ्यात्व और नपुंसक वेदके भुजगार प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके कुछ कम द्वितीय भागप्रमाण हैं । अल्पतर प्रद ेश उदीरक जीव सब जीवोंके साधिक द्वितीय भागप्रमाण है । अवस्थित प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं और अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार सम्यक्त्व, सम्याग्मिध्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार सामान्य तिर्यों में जानना चाहिए ।
$ ३२१. सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर अपराजित विमान तकके द ेवोंमें सब प्रकृतियोंके भजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकोंका भंग ओघके समान है। शेष पद प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण