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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए परिमाणं २८५ .5२४७. अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म०-बारसक०-सत्तणोक० आणदभंगो । एवं जाव० । - २४८. जहण्णए पयदं। दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० जह० पदे० उदीरेंतो सोलसक०-णवणोक० सिया तं तु चउट्ठा० । २४९. सम्म० जह० पदे. उदी. बारसक०-णवणोक० सिया असंखे०गुणन्महिया । एवं सम्मामि। २५०. अणंताणु० कोध० जह० पदे० उदी० मिच्छ० तिण्हं कोधाणं णिय० तं तु चउट्ठा० । णवणोक० सिया तं तु चउट्ठाणप० । एवं पण्णारसक० । २५१. हस्सस्स जह० पदे० उदी० मिच्छ०-रदि० णिय० तं तु चउट्ठा० । सोलसक०-तिण्णिवे०-भय-दुगुंछ० सिया तंतु चउट्ठा० । एवं रदीए । एवमरदिसोगाणं । $२४७. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकृषायोंको मुख्य कर सन्निकर्षका भंग आनत कल्पके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मागेणा तक जानना चाहिए। $२४८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक हैं और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है। यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा असंख्यात भाग अधिक, संख्यात भाग अधिक, संख्यात गुणी अधिक और असंख्यात गुणी अधिक इस प्रकार चतुःस्थान पतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है। $२४९. सम्यक्त्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव बारह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है। यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जधन्यकी अपेक्षा असंख्यात गुणी अधिक अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $२५० अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव मिथ्यात्व और तीन क्रोधोंका नियमसे उदीरक है। जो कदाचित जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित अजघन्य प्रदेश उदीरक है। यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा कहता है। नौ नोकपायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अजघन्य प्रदेश उदीरक है। यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार पन्द्रह कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्षे जानना चाहिए। २५१. हास्यकी जघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव मिथ्यात्व और रतिका नियमसे उदीरक है, जो कदाचित जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित अजघन्य प्रदेश उद है । यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अजघन्य प्रदेश उदीरणा करता है । सोलह कषाय, तीन वेद, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो कदाचित् जघन्य प्रदेश उदीरक है और कदाचित अजघन्य प्रदेश उदीरक है। यदि अजघन्य प्रदेश उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा चतु:
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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