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________________ २८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ सोलसक०-छण्णोक० सिया तं तु चउट्ठाणप० । गस० णिय० तं तु चउड्डाणपदि० । एवं णउंसय०। ६२३७. अणंताणु० कोध० उक्क० पदे० उदीरेंतो मिच्छ० तिण्णं कोध०-गवुस० णिय० तं तु चउट्ठाणपदिदा । छण्णोक० सिया तं तु चदुट्ठाणपदि० । एवं पण्णारसक० । $२३८. हस्सस्स उक्क० पदे. उदीरेंतो मिच्छ०-णवुसय०-रदि० णिय० तं तु चउट्ठाण । सोलसक०-भय-दुगुंछ० मिच्छत्तभंगो । एवं रदीए । एवमरदि-सोगाणं । २३९. भय० उक्क० पदे. उदीरेंतो मिच्छ०-णवुस० हस्सभंगो । सोलसक०पंचणोक० सिया तं तु चउट्ठा० । एवं दुगुंछ । २४०. देवेसु मिच्छ० उक्क० पदे. उदीरेंतो सोलमक०-अट्ठणोक० सिया अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा चतुःस्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। नपुंसक वेदका नियमसे उदीरक है जो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक हैं कृष्ट की अपेक्षा चतुः स्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार नपुंसकवेदको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $ २३७. अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला उक्त जीव मिथ्यात्व, तीन क्रोध और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है, जो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा चतुःस्थानपतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है । छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा चतुःस्थानपतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार पन्द्रह कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $२३८. हास्यकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला उक्त जीव मिथ्यात्व, नपुंसकवेद और रतिका नियमसे उदीरक है, जो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा चतुःस्थानपतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है । सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका भंग मिथ्यात्वके समान है । इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ___$२३९. भयको उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाले उक्त जीव के मिथ्यात्व और नपुंसक. वेदका भंग हास्यको मुख्यकर कहे गये इन प्रकृतियों के सन्निकर्ष के समान है। सोलह कषाय और पाँच नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्ट की अपेक्षा चतु:स्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदंश उदीरणा करता है। इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $२४०. देवोंमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला देव सोलह कषाय और आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है । इसी प्रकार सम्यग्मि
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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