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________________ गा० ६२ ] ___ उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए परिमाणं २७७ गुणहीणं । सम्म०-णवणोक० सिया असंखे०गुणहीणं । एवं तिण्हं कसा० । ____$ २१८. पच्चक्खाणकोह० उक्क० पदे. उदीरेंतो कोहसंजल० णिय० असंखे०गुणही० । सम्म०-णवणोक० सिया० असंखे गुणहीणं । एवं तिण्हं क० । २१९. कोहसंज० उक्क० पदे. उदीरेंतो सव्वपयडीणमणुदीरगो । एवं तिण्णं संजलणाणं । २२०. इत्थिवे० उक्क० पदे. उदीरतो चदुसंज० सिया० असंखे०गुणही० । एवं पुरिसवे०-णस० । २२१. हस्सस्स उक्क० पदे० उदीरेंतो रदिं णिय० तं तु चउडाणपदि० । भयदुगुंछ० सिया तं तु चउट्ठाणप० । तिण्णिवेद-चदुसंजल. सिया असंखे०गुणही० । एवं रदीए । एवमरदि-सोगाणं । सम्यक्त्व और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यान मान आदि तीन कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $२१८. प्रत्याख्यान क्रोधकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव क्रोधसंज्वलनका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। सम्यक्त्व और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार प्रत्याख्यान मान आदि तीन कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । ६२१९. क्रोधसंज्वलनको उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव सब प्रकृतियोंका अनुदीरक है । इसी प्रकार मान आदि तीन संज्वलनोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $ २२०. स्त्रीवेदको उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव चार संज्वलनोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार पुरुषवेद और नपुंसकवेदको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । ६ २२१. हास्यकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करनेवाला जीव रतिकी नियमसे उदीरणा करता है। जो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्टको अपेक्षा चतुःस्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक है । यदि अनुत्कृष्टं प्रदेश उदीरक है तो उत्कृष्ट की अपेक्षा चतुःस्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है । तीन वेद और चार संज्वलनोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है। इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए तथा इसी प्रकार अरति और शोकको मख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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