SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा०६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए खेत्तं पोसणं च २५७ १८१. खेत्तं दुविहं-जह• उक्क । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक० पदे० लोग० असंखे०भागो । अणुक० सव्वलोगो। सम्म-सम्मामि०-इत्थिवे०-पुरिसवे. उक्क० अणुक० पदे. उदीर० लोग० असं०भागो। एवं तिरिक्खा० । सेसगदीसु सव्वपय० उक्क० अणुक पदे० उदी० लोग० असंखे भागो । एवं जाव० । एवं जहण्णयं पि णेदव्वं । $ १८२. पोसणं दुविहं-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिहेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक० पदे० उदी. केव० पोसिदं ? लोग० असंखे भागो । अणुक० केव० पोसिदं ? सव्वलोगो । सम्म० उक० खेतं । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोदस भागा वा। सम्मामि० उक्क. अणुक्क० पदे. केव० पोसि० १ लोग० असं०मागो अट्ट चोइस० । इत्थिवेद-पुरिसवेद० उक० पदे० खेत्तं । अणुक्क० केव० पोसि० १ लोग० असंखे०भागो अट्ट चोइस० सब्बलोगो वा। १८१. क्षेत्र दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो कारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए । शेष गतियोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार जघन्यको भी जानना चाहिए। .६१८२. स्पर्शन दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है । लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ—ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा सम्यक्त्वके साथ संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके होती है, यतः इनके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीवोंका वर्तमान और अतीत स्पर्शन लोकके असंख्यातवें
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy