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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए परिमाणं २५५ १७६. सव्वणिरय-सव्वपंचिं०तिरिक्ख-मणुसअपज०-दवा जाव अवराजिदा त्ति सव्वपय० उक्क० पदे. केव० १ असंखे०भागो । अणुक्क० असंखेजा भागा। मणुसाणं णारयभंगो । णवरि सम्म०-सम्मामि०-इत्थिवे०-पुरिसवेद० उक्क० पदे० संखे०भागो । अणुक्क० संखेजा भागा। मणुसपज०-मणुसिणी-सव्वट्ठदेवा० सव्वपय० उक्क० संखे०भागो। अणुक्क० संखेजा भागा । एवं जाव० । एवं जहण्णयं पि णेदव्वं । १७७. परिमाणाणु० दुविहं--जह० उक्क० । उक्क० पयदं । दुविहो णिद्देसोओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक्क० पदेसुदी० केत्ति० १, संखेजा । अणुक्क० के० ? अणंता । सम्म०-इत्थिवे०-पुरिसवे० उक्क० के० ? संखेजा। अणुक्क० पदे० के० ? असंखेजा। सम्मामि० उक्क० अणुक्क० पदे० उदी० के० ? असंखेजा। 5 १७८. आदेसेण णेरड्य० पढमाए तिरिक्खदुगे देवा सोहम्मीसाणादि जाव अवराजिदा ति सम्म० ओघं । सेसपयडी० उक्क० अणुक्क० पदे० के० १ असंखेजा । विदियादि सत्तमा त्ति जोणिणी-पंचिंदियतिरिक्खअपज.-मणुसअपज०-भवण $ १७६. सब नारकी, सब पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और त विमान तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। मनुष्योंमें नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुयिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार जघन्यको भी जान लेना चाहिए । १७७. परिमाणानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्टप्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। ६ १७८. आदेशसे सामान्य नारकी, प्रथम पृथिवीके नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चद्विक, सामान्य देव तथा सौधर्म और ऐशान कल्पसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सम्यक्त्वका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च योनिनी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त, भवनवासी, व्यन्तर और
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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