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________________ २२० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ संजमासंजमाहिमुहस्स चरिमसमयमिच्छाइडिस्स सव्वविसुद्धस्स । एवमपञ्चखाण०४ । णवरि चरिमसमयसम्माइद्विस्स सव्वविसुद्धस्स । सम्म०-सम्मामि० ओघं । अट्ठक०णवणोक० उक्क० पदेसुदी० कस्स ? अण्णद० संजदासंजदस्स सव्यविसुद्धस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स वा । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिये । णवरि वेदा जाणियन्वा । जोणिणीसु सम्म० अट्ठकसायभंगो। पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज० मिच्छ०-सोलसक०सत्तणोक० उक्क० पदेसुदी० कस्स ? अण्णद० सव्वविसुद्धस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स वा । १००. देवेसु मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०-छण्णोक० णारयभंगो। इथिवेद-पुरिसवेद० बारसकसायभंगो। एवं सोहम्मीसाण | एवं सणकुमारादि णवगेवजा ति। णवरि इत्थिवेदो पत्थि । भवण-वाणवें०-जोदिसि० देवोघं । णवरि सम्म० बारसक०भंगो । अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म०-बारसक०-सत्तणोक० आणदभंगो । एवं जाव० । * जहण्णसामित्तं। $ १०१. उक्कस्ससामित्ताणंतरमेत्तो जहण्णसामित्तमहिकयं दट्ठव्वमिदि अहियारपरामरसवक्कमेदं। wwwwwwwwwwwwww wwwmarawwwwww मिथ्यादृष्टिके होती है । इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण चार कषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका स्वामित्व जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सर्वविशुद्धअन्तिम समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके यह उत्कृष्ट स्वामित्व होता है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। आठ कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सर्वविशुद्ध अथवा तत्प्रायोग्य विशुद्ध संयतासंयतके होती है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपना-अपना वेद जान लेना चाहिए । योनिनियोंमें सम्यक्त्वका भंग आठ कषायोंके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सर्वविशुद्ध अथवा तत्प्रायोग्य विशुद्धके होती है। 5 १००. देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंका भंग नारकियोंके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग बारह 'कषायोंके समान है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए। इसी प्रकार सनत्कुमारसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ स्त्रीवेद नहीं है। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सामान्य देवोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वका भंग बारह कषायोंके समान है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंका भंग आनतकल्पके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। * जघन्य स्वामित्वका अधिकार है। ६ १०१. उत्कृष्ट स्वामित्वके अनन्तर यहाँ से जघन्य स्वामित्व अधिकृत जानना चाहिए इस प्रकार अधिकारका परामर्श करनेवाला यह वाक्य है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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